हर इंसान की अपनी एक छोटी सी दुनिया है। जिसमें वह अपनी हैसियत के मुताबिक रहता है। एक खुशी की तलाश में वह यहां-वहां भटक रहा है। खुशी भी क्या, बस वह जी-तोड मेहनत के बाद मालूम चलता है कि आज यह कमी है, कल को इसका पूरा करना है। अगले दिन कोई और ही दुख सामने खड़ा दिखाई देता है। सिर्फ कहने भर की बातें होती है हम तुम्हारे साथ है, हम सब एक है। सच्चाई यह है कि कोई किसी के साथ नहीं है यहां तक कि वह भी जो उसके अपने होते है, जिनके साथ वह बचपन से खेलता-कूदता हुआ बड़ा हो जाता है। वह भी अपनी-अपनी छोटी दुनिया में रच-बस गए होते है, उनके पास तो इतना भी समय नहीं होता है कि दो बोल प्यार से बोल कर थोड़ी सी हिम्मत ही बढ़ा। उल्टा जब भी मिलेंगे, दो-चार कड़वी सी बातें बोल कर दिल और दुखा देते है। हर जगह माहौल में तनाव ही तनाव पसरा रहता है। तनाव इस बात को लेकर रहता है कि परिजनों की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए पर्याप्त धन की कमी रहती है। यह तनाव हमेशा मन को अशांत रखता है. यही छोटी-छोटी बातें और हर इंसान की दुनिया मिलकर एक बड़ी दुनिया बनाते है। जहां के हाल तो और भी खराब है, बस सब कुछ चल रहा है। अब कैसे चल रहा है किसी को मालूम नहीं। सब एक-दूसरे से आगे बढ़ने कोशिश में बिना सोचे-समझे भागते जा रहे है। भागते हुए किसी को टक्कर लगे, कोई गिरे या मरे उनकी बला से। ईमानदारी, नैतिकता और प्यार, सब शब्दों और बातों में सिमट कर रह गया है। गमगीन व उदास माहौल में योग्य व समझदार इंसानों की बातें दिल को सुकून देती है, सिर्फ उतनी ही देर जितनी देर वह सामने रहते है। उनके जाते ही उनकी बातें भी हवा हो जाती है और रह जाता है तो सिर्फ एक सवाल कि आखिर यह सब कब तक चलता है रहेगा या जिंदगी के कठिन रास्तों पर चलते हुए कभी अपनी खुशी हासिल कर पाएंगे?
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मंथन के लिये उत्प्रेरणा.
हरीशभाईजी, आपकी प्रस्तुति के कई विन्दु तथ्यपरक हैं. मन की सतह और गहराई की वैचारिकता में अंतर हुआ करता है. इसकी गहराई में डूबा व्यक्ति उन अनुभूतियों से विलग हो जाता है जो उसे इसकी सतह पर आतंकित करती सी प्रतीत होती हैं.
आपकी इन क्षणिकाओं से इस मंच के पाठकों के सामान्य विचार-प्रवाह को क्रियात्मक दिशा मिले, इसी अपेक्षा से आपको सादर धन्यवाद देता हूँ.
हरीश जी जँहा अपेक्षा होती है वहीँ उपेक्षा भी होती है अतः इंसान कोई अपेक्षा ना करते हुए अपना फर्ज अपना धर्म निभाता जाए तो मन में संतोष रहेगा आपकी रचना अपने मन से विचार विमर्श को मजबूर कर रही है आज के दौर में हर किसी के मन की यही स्थिति है जिसका निवारण हमे ही करना है |बढ़िया प्रस्तुति |
हरीश जी ,यह सच है की हर इंसान ख़ुशी चाहता है और उसकी तलाश में भटकता रहता है ,अगर सोचा जाये तो ख़ुशी इधर उधर भटकने पर नही बल्कि अपने अंदर ही छुपी होती है अगर आप अपना कर्तव्य समर्पित , निष्ठां पूर्वक निष्काम भाव से के रहे हो तब आपको अपने किये पर संतुष्टि होगी और वही आपकी ख़ुशी का कारण भी होगी ,शुभकामनाएं
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