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ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो

हुश्न को माह कहते हो कमाल करते हो
आदमी को खुदा बुत को जमाल करते हो

चश्म में डूब कर उनका जबाब देते हैं
मौन पलकें झुका के जो सवाल करते हो

नोट में वोट दे ईमान बेच कर तुम ही
बात सुनते नहीं नेता बबाल करते हो

इश्क की आग में सूखा जला हुआ तन्हा
तुम उसे दीद दे ताज़ा निहाल करते हो

है हकीकत जमाने की तुझे पता लेकिन
ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो

छोड़ के हाथ जिसने तोड़ दिया हर रिश्ता
साथ पाने उसी का क्यूँ मलाल करते हो

जो निगाहें बयाँ करती जरा पढो तुम भी
"दीप" बेकार ही उनसे सवाल करते हो

..............दीप..................

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Comment

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Comment by UMASHANKER MISHRA on July 4, 2012 at 11:34pm

जो निगाहें बयाँ करती जरा पढो तुम भी
"दीप" बेकार ही उनसे सवाल करते हो .....बहुत बढ़िया लाजवाब है वाह वाह ...

Comment by Yogi Saraswat on July 4, 2012 at 12:36pm

है हकीकत जमाने की तुझे पता लेकिन
ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो

बहुत खूब , पटेल जी ! बहुत बढ़िया पंक्तियाँ


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Comment by rajesh kumari on July 2, 2012 at 8:17pm

चश्म में डूब कर उनका जबाब देते हैं
मौन पलकें झुका के जो सवाल करते हो..बहुत सुन्दर  ग़ज़ल बहुत अच्छी 

Comment by Rekha Joshi on July 2, 2012 at 12:07am

संदीप जी ,

है हकीकत जमाने की तुझे पता लेकिन
ढूँढने को ख़ुशी क्या क्या ख़याल करते हो बहुत बढ़िया ,बधाई 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 1, 2012 at 11:03pm

चश्म में डूब कर उनका जबाब देते हैं
मौन पलकें झुका के जो सवाल करते हो

संदीप जी खूबसूरत  गजल ....एक से बढ़ एक ..

  छोड़ के हाथ जिसने तोड़ दिया हर रिश्ता
साथ पाने उसी का क्यूँ मलाल करते हो  ..जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 

 

Comment by AVINASH S BAGDE on July 1, 2012 at 10:31pm

इतनी उम्दा गज़लें  लिखते हो संदीप,

बा-कलम आप तो कमाल करते हो...... 

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