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राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- १५

ये मेरी शायरी, ये मेरी सुखनवरी (साहित्य) तुम्हारी याद की रुबाइयां हैं...

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मैं तुम्हारे साथ पहाड़ों के पार चला जाऊं, या कि समंदर के आर पार हो जाऊं. मैं तुम्हारे साथ कायनात (सृष्टि) की हद से गुज़र जाऊं या कि मादरेवतन (मातृभूमि) की ख़ाक में मिल जाऊं. मैं तुम्हारे साथ बादलों के जंगल में खो जाऊं या कि झरनों की धार में बह जाऊं. मैं तुम्हारे साथ सहरा (रेगिस्तान) में घर बसाऊं या कि किसी गाँव के मोहल्ले में सर्फ़ (शेष) हो जाऊं. मैं तुम्हारे साथ सपनों को सच बनाऊं या कि सच के सपनों में खो जाऊं.

 

क्या फर्क पड़ता है मैं तुम्हारे साथ ज़िंदगी के इस सुर का आलाप करूँ या हयात (जीवन) को उस राग में गाऊं. तुम जब साथ होते हो हालात के तफर्कों (भेदों) को समझने की अक्ल कहाँ होती है. ये तो बस तुम्हारी जुदाई है जिसने मुझे दाना (अक्लमंद) और हस्सास (संवेदनशील) बना दिया है. ये मेरी शायरी, ये मेरी सुखनवरी (साहित्य) तुम्हारी याद की रुबाइयां हैं जिनमें तुम्हारी तरह न तुम हो और न बह्र (स्केल) है.

 

© राज़ नवादवी

पुणे, २४/०४/२०१२ 

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