तुम......
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मैं अगर पत्थर हूँ तो भगवान बना लो तुम, और पानी हूँ तो जी चाहे बहा लो तुम. मै गुज़रा वक्त हूँ तो यादों में बसा लो तुम, या कोई लकीर हूँ तो खुद में ही मिटा लो तुम. मैं अगर फूल हूँ तो गुलदस्ते में सजा लो तुम, या कोई पढ़ी हुई किताब हूँ तो ताखे पे लगा लो तुम. मैं कोई सपना हूँ दो सच कर के दिखा दो तुम, या कोई गीत हूँ तो अपनी तन्हाई में गुनगुना लो तुम. मैं किसी ख़्वाब का मंज़र हूँ तो पलकों पे सजा लो तुम, या कोई बंजर ज़मीन का टुकड़ा हूँ तो अपनी राहगुज़र बना लो तुम. मैं तेरी आँखों से गिर गया हूँ किसी शबनम सा तो उठा लो तुम, और भटक गया हूँ रास्ते में चलता चलता तो बुला लो तुम.
मैं जो कुछ भी हूँ, जैसा भी हूँ, जिस रूप में भी चाहो, बस अपना लो तुम!
© राज़ नवादवी
पुणे, २१/०४/२०१२
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