(आज से उन्नीस वर्ष पूर्व लिखी रचना)
वो रिश्ता भूल आया हूँ............
जिस पुरानी कदीम सी जगह से
जन्मों का रिश्ता महसूस करता आया हूँ
उसी, हरे पानी की झील से लगी सीढ़ियों पे
एक रिश्ता भूल आया हूँ अपना.........
एक नामालूम अन्जान सा
बारिश की रात में
बादलों के पीछे छिपे चाँद सा रिश्ता
जिसे आँखों में भरकर अब तक ढोता रहा था
जागते सोते, हर मोड़ पे जिसे
साथ रखता था उम्मीद की तहों में
वो रिश्ता भूल आया हूँ
उन कदीम आहनी ज़ीनों पे
जिनपे हम बैठे रहे थे देर तलक
पानी में डूबते उतराते सूरज को तकते हुए
ये समझने की कोशिश में शायद
कि वक़्त हर लम्हा
कुछ ऐसी ही डूबती उतराती
अजनबी शक्लों में
हमारी चाहतों की तश्कील क्यों करता है?
उन्हीं क़दीम आहनी ज़ीनों पे
और भी कुछ छोड़ आया हूँ पीछे
शायद मेरी पलकों पे टिकी एक सुब्ह
जिसकी शबनमी आँच का हुस्न
अभी गया नहीं था
या ओस की चादर लपेटे
जाड़े की एक रात
जो चाँद के निकलने तक
सो न सकी थी तन्हा
या मेरी अना का एक टुकड़ा
जिसे रखा था बचा के अब तक तुम्हारे लिए
वो रिश्ता भूल आया हूँ
© राज़ नवादवी
सोशल वर्क हॉस्टल, नई दिल्ली
(०२/०३/१९९३)
Comment
मेरे आत्मीय सौरभ जी, आपके शब्दों को पढ़कर बेहद खुशी हुई, जिसे बयान नहीं कर सकता. आपकी साहित्यापरकता और मर्मज्ञता से थोड़ा वाकिफ ज़रूर हूँ और इसलिए आपके प्रेरणास्पद शब्द मेरे लिए किसी तमगे की तरह हैं. दिल से लगा के रखूंगा.
मेरे प्रिय अभिनव जी, आपके स्नेह का सदैव आभारी रहूंगा. मेरे जज़्बात ने आपके दिल में कहीं आपके माजी के सोये नक्श को जगा दिया- मैं खुश होऊं या अफ़सोस करूँ समझ नहीं आता. यादें अच्छी तो लगती हैं मगर दर्द भी जगा जाती हैं.
आदरणीय अविनाश जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद
जाड़े की एक रात
जो चाँद के निकलने तक
सो न सकी थी तन्हा
या मेरी अना का एक टुकड़ा
जिसे रखा था बचा के अब तक तुम्हारे लिए
वो रिश्ता भूल आया हूँ
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राज़ नवदवी जी,wah!
आदरणीय श्री राज़ जी ! हम सभी अपरिचित ही हैं इस राह में | पर हमारी रचनाएँ और उनकी धार एक दूसरे से साहित्यिक प्रेम की डोर से बांधती है | ओ बी ओ के सूत्र में आप भी बांध गए हार्दिक स्वागत आपका | आपकी रचनाओं को पढ़ते हुए खुद अपने बीते दिनों को पुनः जीने का एहसास होता है | यही आपकी कलम की ताकत और उसकी सफलता है | बहुत बहुत बधाई | " एक अपरिचित रचनाकार " श्रृंखला का उनवान कुछ खटकता है ख़ास कर जब यह स्वयं के लिए हो | विचार कीजियेगा यह सलाह मात्र है | यह खुला मंच है | आपको प्रसन्नता और संतुष्टि मिलेगी | सादर साधुवाद !!
भाई राज़ नवदवी जी, इस मंच पर आपकी कुछ रचनाएँ हमने देखीं हैं. संभवतः अपनी बातों से पहली बार प्रस्तुत हो रहा हूँ.
रुमानी लिहाज में कुछ कहना उतना सरल नहीं होता जितना दीखता है या समझा जाता है. आपकी प्रस्तुत कविता मुलायम सी रचना है जिसमें आत्मपरकता कायदे से प्रस्तुत हुई है. इस हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ.
एक सफल प्रस्तुति के लिये बधाइयाँ स्वीकार करें.
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