मैं चिरकाल से अपनी आत्मा में समाधिस्थ हूँ...
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मैं चिरकाल से अपनी आत्मा में समाधिस्थ हूँ, मुझे सिर्फ इस बात में अटूट विश्वास की आवश्यकता है. शनैः शनैः यह ज्ञान मेरे बाह्य भौतिक जीवन को भी अपने दिव्य आनंद की रसभरी हिलोरों में समा लेगा और मैं सांसारिकता की लहरों पे चढ़ता उतरता भी अपने आदि देव परम पूज्य परमात्मा के अनंत साम्राज्य में ही स्थापित रहूँगा, उसके चिर पुरातन मंदिर के सिंहद्वार की तरह!
हे प्रभु! मैं आपके उद्यान का ही एक पुष्प हूँ जो नाना मायावी प्राभावों से जीर्ण हो गया है. इससे पहले कि मैं कुम्हला के बिखर जाऊं और मेरे जीर्णता प्रभावित बीज नए मायावी जीवनों को अस्तित्व दें, तू अपने दैवीय स्पर्शों से मेरी क्लांत काया और मन में नूतन प्राणों का संचार कर!
© राज़ नवादवी
पुणे, ०२/०६/२०१२
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