For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ३३

(आज से बारह वर्ष पूर्व लिखी रचना)              

दिल में बसे अंजान रास्ते..

 

दिल में भी हैं बसे

कई अंजान रास्ते

जिनकी वाक़िफ़त शायद

इक उम्र ले लेगी मेरी हैरान आँखों से चुराकर।

 

अच्छे, बुरे-जैसे भी हैं लोग गिर्दोपेश में

जो हमसाये हैं या हमसफ़र

या जो गुज़र गये बहुत पास आकर

सब, कहीं न कहीं बसे होतें हैं

इन्हीं अन्जान रास्तों पर

जो दिल में बसे तो होते हैं मगर

जिनके क़ुर्ब से फ़िर भी आती है

मुग़ायरत की इक दर्दखेज़ सहर

दिन गुज़रता है आलूदा पसोपेश में

कशमकश लिये आती है रात मेरे अंदर

वही दरवाज़े, वही खिड़कियाँ, वही दीवारोदर

मगर,

दिल में बसे अंजान रास्तों की

उसे भी नहीं है ख़बर

जो लगते हैं कभी बहुत तवील

तन्हाईयों के फ़ासलों में फैले

तुम्हारी आँखों के समंदर

और जो कभी लगते हैं

तुम्हारी मुलाक़ात की मानिंद

सिमटे, सहमें मुख़्तसर।

 

© राज़ नवादवी

अलीगंज, लखनऊ,

(अप्रिल २०००) 

Views: 362

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on July 3, 2012 at 10:27pm

धन्यवाद सौरभ भाई, आपकी इक इक तहसीन मेरे लिए इक बाइसेफक्र है. ज़रूर, आइन्दा इस बात का ख़याल रखूंगा कि लफ़्ज़ों के मायने भी साथ लिखूं. आपकी तजवीज़ सर आँखों पे


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 1, 2012 at 1:27pm

भाई राज़ साहब, बहुत ही सुन्दर कहन और उतनी ही उम्दा कोशिश.

यह कविता बहुत कुछ कहती जाती है. और कहने का लिहाज प्रवहमान है.

एक गुज़ारिश :   उर्दू या हिन्दी के अप्रचलित शब्दों के अर्थ हम रचना के ठीक नीचे दे दिया करें तो सामान्य पाठकों को रचनाओं को सम्पूर्णता में लेने और फिर समझने में आसानी होगी. उनका रचना के प्रति जुड़ाव भी पैदा होगा.

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे*******तन झुलसे नित ताप से, साँस हुई बेहाल।सूर्य घूमता फिर  रहा,  नभ में जैसे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी को सादर अभिवादन।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"ऐसे ऐसे शेर नूर ने इस नग़मे में कह डाले सच कहता हूँ पढ़ने वाला सच ही पगला जाएगा :)) बेहद खूबसूरत…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा, मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा. . इश्क़ के…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
yesterday
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service