इश्क के मजबूत दरख्त में
शक की दीमक लग गयी है
यकीन के सब्ज पत्ते
पीले पड़ पड़ के
रिश्तों की ड़ाल से बेसाख्ता गिर रहे हैं
झूठ के तेज़ झोंके
दरख्त को जड़ से उखाड़ने की फिराक में हैं
सच की माटी जड़ों का साथ छोड़ रही है
दौरे हाजिर में बंजर होती जमीं
नफरत के खार से सजी धजी है
दरख्त की पीर कौन समझेगा
इश्क का मजबूत दरख्त
हर सुबह खोखला होता जा रहा है ...................दीप .....................
Comment
वाह, क्या खूब लिखा आपने आजके मोहब्बत को, बिल्कुल सही।
बधाई
Sandeep ji
इश्क के मजबूत दरख्त में
शक की दीमक लग गयी है
यकीन के सब्ज पत्ते
पीले पड़ पड़ के
रिश्तों की ड़ाल से बेसाख्ता गिर रहे हैं bahut khub
नफरत के खार से सजी धजी है
दरख्त की पीर कौन समझेगा
इश्क का मजबूत दरख्त
हर सुबह खोखला होता जा रहा है
सुन्दर अभिव्यक्ति ! इश्क करने वालों को एक बार पढनी चाहिए
बेशक, बधाई.
आज के दौर की इश्क़िया हालत बखूबी उभर कर आयी है.
बहुर खूब.
बहुत खूब..:)
इश्क के मजबूत दरख्त में
शक की दीमक लग गयी है
यकीन के सब्ज पत्ते
पीले पड़ पड़ के
रिश्तों की ड़ाल से बेसाख्ता गिर रहे हैं ...vishwas ka ANTI TERMIDE khatm ho gaya hai....
behtareen soch v shabd sanyojan............दीप ji ..........
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