बारिश का मौसम
काले काले मेघ
काली काली जुल्फों के सायों की मानिंद
टिप -टिप टिप- टिप
बूँदें गिरती है
भीगी भीगी जुल्फों से टूटे मोती से
भिगोती है तन
मेरी सानों को छूती
भिगोती है मन
तेज़ हवाएं
खुनक खुनक सी
जैसे आँचल से
करती हो पंखा
हर ओर हरियाली
सब्ज शबनमी
सेज सजी है
और घूंघट में सिमटी शर्माती सी
आफताबी किरण
लुका छुपी खेलती चांदनी
गले लगाती है
तन्हाई
आग लगाती है
जुदाई
यादों के खिलते खार
चाहत के मुरझाये गुल
दर्द भरी सलवटें
बिस्तर पर
सूनी सी करवटें
और ठंडी बूंदे
सुलगाती हैं शोले
जो दहकते हैं
गम की तपिश लिए
आँखें भी करती हैं
बरसात
रिमझिम रिमझिम
पाक गंगाजल सी
जिसमे दिखता है अक्स
सच का अक्स
जो आइना है
कल का , आज का
मेरा और सिर्फ मेरा
सब तो बदल गया
पर वो न बदला
बारिश का मौसम
............संदीप पटेल "दीप ..........
Comment
jai ho !
achha laga
शाब्दिक होने से बचा जा सकता था मुझे समझ आया है सर जी
भावों को कम शब्दों में ही समेटा जा सकता था
सच कहा गुरुवर आपका आभारी हूँ
और प्रतिक्रियें नहीं दे पाने का क्षोभ रहता है गुरवर किन्तु अभी मैं क्षमा चाहता हूँ सभी मित्र जनों से गुरुजनों से अग्रजों से
संदीपजी, आपकी इस कविता में बहुत ही संभावनाएँ थीं. काश आप शाब्दिक होने से बचे होते. इस रचना पर ’अच्छा है’ मैं नहीं कहूँगा, कि, आप से अपेक्षा होती है.
परन्तु, सर्वप्रथम एक प्रश्न है आपसे. क्या आप पढ़ते हैं ? अन्य रचनाकारों की रचनाओं को ? या अन्य की टिप्पणियों को ? बहुत कुछ हल होने लगेगा. अनुभूत भावनाएँ शब्द चाहती हैं किन्तु, शाब्दिकता नहीं. इसके प्रति संवेदनशीलता अन्यान्य रचनाओं को पढ़ने से बढ़ती है. यदि आप अन्य की रचनाओं को पढ़ते हैं तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि मैं कहाँ इंगित कर रहा हूँ.
दूसरी बात, यदि आप अन्य रचनाकारों की रचनाएँ पढ़ते हैं तो आपकी सम्यक और इंगित करती टिप्पणियों से मैं बहुत कम ही दो-चार हो पाया हूँ.
सधन्यवाद
सब तो बदल गया
पर वो न बदला
बारिश का मौसम...wah!...संदीप पटेल "दीप ...wah!
आँखें भी करती हैं
बरसात
रिमझिम रिमझिम
पाक गंगाजल सी
जिसमे दिखता है अक्स
सच का अक्स
जो आइना है
कल का , आज का
मेरा और सिर्फ मेरा
सब तो बदल गया
पर वो न बदला
बारिश का मौसम
बहुत खूब , सुन्दर शब्द !
Sandeep ji
हर ओर हरियाली
सब्ज शबनमी
सेज सजी है
और घूंघट में सिमटी शर्माती सी
आफताबी किरण sundr shbd piroyen hae aapne ,badhai
हर ओर हरियाली
सब्ज शबनमी
सेज सजी है
और घूंघट में सिमटी शर्माती सी
आफताबी किरण
बहुत खूब. बधाई
रिमझिम फुहारों जैसे एहसास के शब्द बहुत सुन्दर मनभावन रचना
रस भरी कविता......बधाई बंधुवर........
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