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लिख नहीं जो सकता तू सच ख़बर ज़माने की

लिख नहीं जो सकता तू सच ख़बर ज़माने की।

बोल क्या ज़रूरत है फिर क़लम उठाने की॥

 

छोड़ दे ये हसरत भी दिल कहीं लगाने की।

सह नहीं जो सकता तू ठोकरें ज़माने की॥

 

धमकियाँ वो देता है मुझको ख़ाक कर देगा,

चाल चलता रहता है घर मेरा जलाने की॥

 

हमने इस मोहब्बत में इतने ज़ख्म खाये के,

अब नहीं रही हिम्मत फिर से दिल लगाने की॥

 

आज फिर से माज़ी की याद में मैं खोया हूँ,

कोशिशें भी जारी है तुझको भूल जाने की॥

 

तोड़ता है दिल मेरा और दोस्त कहता है,

क्या अदा है तेरी भी दोस्ती निभाने की॥

 

आजकल तो ग़ैरों की महफिलें सजाते हो,

है तुम्हें कहाँ फुर्सत अपना घर सजाने की॥

 

आँख में नमी दे दी दिल को चाक कर डाला,

ये सज़ाएँ दी तुमने मुझको मुस्कुराने की॥

 

जांच ले परख ले तू बार बार “सूरज” को,

इतनी जल्दी मत करना तुम क़रीब आने की॥

                 

                        डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:32pm

लिख नहीं जो सकता तू सच ख़बर ज़माने की।

बोल क्या ज़रूरत है फिर क़लम उठाने की॥

 वाह 

बधाई 

Comment by Raj Tomar on June 21, 2012 at 11:02pm

बहुत ही सुन्दर गज़ल है.. और ये शेर...

आँख में नमी दे दी दिल को चाक कर डाला,

ये सज़ाएँ दी तुमने मुझको मुस्कुराने की॥"

..अहा, क्या कहना. :)

Comment by AVINASH S BAGDE on June 21, 2012 at 3:56pm

आँख में नमी दे दी दिल को चाक कर डाला,

ये सज़ाएँ दी तुमने मुझको मुस्कुराने की॥...wah

 

 

जांच ले परख ले तू बार बार “सूरज” को,
इतनी जल्दी मत करना तुम क़रीब आने की

सुन्दर प्रस्तुति .. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2012 at 10:19pm

तोड़ता है दिल मेरा और दोस्त कहता है,

क्या अदा है तेरी भी दोस्ती निभाने की॥

 वाह वाह हर शेर लाजबाब है किस किस की बात करूँ बहुत खूबसूरत ग़ज़ल 

Comment by Rekha Joshi on June 20, 2012 at 6:52pm

आँख में नमी दे दी दिल को चाक कर डाला,

ये सज़ाएँ दी तुमने मुझको मुस्कुराने की॥

 अति सुंदर ग़ज़ल ,बधाई सूरज जी |

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 19, 2012 at 11:55pm

आदरणीय डॉ सूरज जी ..अच्छी गजल ...मुबारक हो यहाँ भी धमाल मचाने और चुने जाने के लिए 

भ्रमर ५ 
Comment by Albela Khatri on June 19, 2012 at 9:18am

सुन्दर
अनुपम ग़ज़ल.....
वाह सूरज जी,

आजकल तो ग़ैरों की महफिलें सजाते हो,

है तुम्हें कहाँ फुर्सत अपना घर सजाने की॥

___बधाई

Comment by Mahendra Kumar on June 19, 2012 at 8:20am

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है ....दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ है.....बधाई हो ....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 18, 2012 at 11:22pm

ग़ज़ल के लिये सादर बधाइयाँ, डॉक्टर साहब.

जांच ले परख ले तू बार बार “सूरज” को,
इतनी जल्दी मत करना तुम क़रीब आने की

सुन्दर प्रस्तुति .. .

Comment by Nilansh on June 18, 2012 at 9:43pm

aapki ghazal ke liye bahut badhai surya bhai.

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