लिख नहीं जो सकता तू सच ख़बर ज़माने की।
बोल क्या ज़रूरत है फिर क़लम उठाने की॥
छोड़ दे ये हसरत भी दिल कहीं लगाने की।
सह नहीं जो सकता तू ठोकरें ज़माने की॥
धमकियाँ वो देता है मुझको ख़ाक कर देगा,
चाल चलता रहता है घर मेरा जलाने की॥
हमने इस मोहब्बत में इतने ज़ख्म खाये के,
अब नहीं रही हिम्मत फिर से दिल लगाने की॥
आज फिर से माज़ी की याद में मैं खोया हूँ,
कोशिशें भी जारी है तुझको भूल जाने की॥
तोड़ता है दिल मेरा और दोस्त कहता है,
क्या अदा है तेरी भी दोस्ती निभाने की॥
आजकल तो ग़ैरों की महफिलें सजाते हो,
है तुम्हें कहाँ फुर्सत अपना घर सजाने की॥
आँख में नमी दे दी दिल को चाक कर डाला,
ये सज़ाएँ दी तुमने मुझको मुस्कुराने की॥
जांच ले परख ले तू बार बार “सूरज” को,
इतनी जल्दी मत करना तुम क़रीब आने की॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
Comment
लिख नहीं जो सकता तू सच ख़बर ज़माने की।
बोल क्या ज़रूरत है फिर क़लम उठाने की॥
वाह
बधाई
बहुत ही सुन्दर गज़ल है.. और ये शेर...
आँख में नमी दे दी दिल को चाक कर डाला,
ये सज़ाएँ दी तुमने मुझको मुस्कुराने की॥"
..अहा, क्या कहना. :)
आँख में नमी दे दी दिल को चाक कर डाला,
ये सज़ाएँ दी तुमने मुझको मुस्कुराने की॥...wah
जांच ले परख ले तू बार बार “सूरज” को,
इतनी जल्दी मत करना तुम क़रीब आने की
सुन्दर प्रस्तुति .. .
तोड़ता है दिल मेरा और दोस्त कहता है,
क्या अदा है तेरी भी दोस्ती निभाने की॥
वाह वाह हर शेर लाजबाब है किस किस की बात करूँ बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
आँख में नमी दे दी दिल को चाक कर डाला,
ये सज़ाएँ दी तुमने मुझको मुस्कुराने की॥
अति सुंदर ग़ज़ल ,बधाई सूरज जी |
आदरणीय डॉ सूरज जी ..अच्छी गजल ...मुबारक हो यहाँ भी धमाल मचाने और चुने जाने के लिए
सुन्दर
अनुपम ग़ज़ल.....
वाह सूरज जी,
आजकल तो ग़ैरों की महफिलें सजाते हो,
है तुम्हें कहाँ फुर्सत अपना घर सजाने की॥
___बधाई
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है ....दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ है.....बधाई हो ....
ग़ज़ल के लिये सादर बधाइयाँ, डॉक्टर साहब.
जांच ले परख ले तू बार बार “सूरज” को,
इतनी जल्दी मत करना तुम क़रीब आने की
सुन्दर प्रस्तुति .. .
aapki ghazal ke liye bahut badhai surya bhai.
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