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उसकी अदा ने दिल को घायल कर रखा है

उसने यारों मुझको पागल कर रखा है।
उसकी अदा ने दिल को घायल कर रखा है॥

अश्क़ों की बारिस को अब मैं रोकूँ कैसे,
आँखों को सावन का बादल कर रखा है॥

ख़ुद ही बढ़ के जाम उठा लेंगे महफिल में,
उसकी उलझन को मैंने हल कर रखा है॥

सूरज तेरी धूप भला क्या कर लेगी जब,
माँ ने मेरे सर पे आँचल कर रखा है॥

मेरे ख़यालों में छाया रहता है हरदम,
जीना मुश्किल उसने पल पल कर रखा है॥

जब से उसकी चाहत रूठी तबसे उसने,
दिल के घर आँगन को जंगल कर रखा है॥

ज़हरीले साँपों ने घेरा मुझको “सूरज”
मैंने जब से ख़ुद को संदल कर रखा है॥

 

                  डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

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Comment by Nilansh on June 14, 2012 at 7:57pm

khoobsoorat ghazal surya bhai

Comment by Albela Khatri on June 14, 2012 at 1:14pm

जय हो डॉ सूर्य बाली  'सूरज' जी,
क्या ख़ूब अन्दाज़
क्या ख़ूब अलफ़ाज़
मस्त ग़ज़ल.........

सूरज तेरी धूप भला क्या कर लेगी जब,
माँ ने मेरे सर पे आँचल कर रखा है॥

_____इस शे'र ने तो आपका कायल कर दिया
__बधाई !

Comment by Bishwajit yadav on June 13, 2012 at 9:12pm
प्रणाम सुरज जी
उसने यारों मुझको पागल कर रखा है।
उसकी अदा ने दिल को घायल कर रखा है||
वाह क्या बात है बहुत बेजोड रचना है
"टच माई दिल भईया जी"
Comment by UMASHANKER MISHRA on June 13, 2012 at 8:34pm

ज़हरीले साँपों ने घेरा मुझको “सूरज”
मैंने जब से ख़ुद को संदल कर रखा है॥ बहुत सुन्दर भाव के साथ उत्तम प्रस्तुति

Comment by Albela Khatri on June 13, 2012 at 7:53pm

क्या बात  है डॉ  सूर्य बाली  'सूरज' जी,
वाह ! वाह !  बहुत ख़ूब ग़ज़ल..........
ख़ास तौर पर यह शे'र  दिल में उतर गया -

सूरज तेरी धूप भला क्या कर लेगी जब,
माँ ने मेरे सर पे आँचल कर रखा है॥

___बधाई

Comment by अरुण कान्त शुक्ला on June 13, 2012 at 7:08pm

जब से उसकी चाहत रूठी तबसे उसने,
दिल के घर आँगन को जंगल कर रखा है॥

अलग और बढ़िया अंदाज .. बधाई .

Comment by AVINASH S BAGDE on June 13, 2012 at 6:53pm

सूरज तेरी धूप भला क्या कर लेगी जब,
माँ ने मेरे सर पे आँचल कर रखा है॥.....kurban....kya sher hai “सूरज” bhai.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 13, 2012 at 3:41pm

आदरणीय सूरज जी, 

सादर 

शेरो   के  गुलदस्ते  को 

लोग  गजल  कहते हैं 

तपता  रहता है जो 

उसको  सूरज  कहते  हैं 

बधाई.

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