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मुहब्बत कर लें

मुहब्बत कर लें

आओ मिल जुल के इस दुनियाँ से मुहब्बत कर लें

अमन-ओ-चैन का हर दिल में इक जज़्बा भर दें
गर तेरे शहर मंदिर नहीं कोई बात नहीं
हमको ले चल तू मस्जिद में इबादत कर लें
फर्क मज़हब में गर होता तो रंग-ए-खूँ भी अलग होता
तेरा पीला उसका नीला कहाँ लाल होता
तेरे अल्ला मेरे भगवान में कोई फर्क नहीं 
हो न ऐतवार तो चल उनसे ही शिकायत कर लें 
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
24 /05 /2012 .
09350078399

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Comment by Deepak Sharma Kuluvi on October 6, 2012 at 5:07pm

thanks all

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 1, 2012 at 9:16pm

कुल्लुवी जी
           सादर, बहुत सुन्दर रचना.बधाई.
फर्क मज़हब में गर होता तो रंग-ए-खूँ भी अलग होता
तेरा पीला उसका नीला कहाँ लाल होता

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on May 28, 2012 at 10:47am

sabka shukriya jinhen rachna acchhi lagi unka aur bhi jyada jinhen nahin lagi kyonki unke liye agli rachna teyyar hai

Comment by आशीष यादव on May 26, 2012 at 10:20am

बिल्कुल सही रचना प्रस्तुत की है आपने।
बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 25, 2012 at 1:24pm

बहुत ही सुदर संदेशपरक प्रस्तुति ..बहुत खूब 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 24, 2012 at 6:33pm

aadarniya deepak ji, saadar 

bahut sundar sandesh. bahut kuch kah diya badhai

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on May 24, 2012 at 5:30pm

shukriya baggi ji ganesh ji


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 24, 2012 at 5:24pm

वाह वाह, सांप्रदायिक सौहार्द को समर्पित एक बहुत ही खुबसूरत रचना, बधाई दीपक कुल्लवी जी,

Comment by ganesh lohani on May 24, 2012 at 3:02pm

 वाह बहुत खूब फ़रमाया आपने शर्मा जी

तेरे अल्ला मेरे भगवान में कोई फर्क नहीं 
हो न ऐतवार तो चल उनसे ही शिकायत कर लें 

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