For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरबों माल डकार के

अरबों माल डकार के राजा जी गै छूट।
जनहित में संदेश है लूट सके तो लूट।।

निकले जब वो जेल से यूँ दिखलाया रंग।
अभिवादन थे कर रहे जीत लिया ज्यों जंग।।

बाहर आकर वायु मे चुम्बन रहे उछाल।
इतने घृणीत कर्म का कोई नही मलाल।।

हर्षित चेलाराम के जमीं न पड़ते पाँव।
बेशरमी रख ताख पे खुश हो करते काँव।।

झिंगुर घुरवा से कहे "जितबे तुहीं चुनाव।
कट्टा पिस्टल साथ हैं डर जइहैं सब गाँव"।।

  • आशीष यादव

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 17, 2012 at 6:34pm
प्रिय आशीष जी, सस्नेह 
यथार्त का काव्यात्मक चित्रण. अच्छा लगा. बधाई.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 17, 2012 at 5:47pm

अरबों माल डकार के  राजा जी गै छूट।
जनहित में संदेश है  लूट सके तो लूट।।............   और आपने नैदान मार लिया, आशीष भाई.

सामयिक तथ्यों पर सुन्दर प्रयास.

Comment by Rekha Joshi on May 17, 2012 at 4:41pm

बाहर आकर वायु मे  चुम्बन रहे उछाल।

इतने घृणीत कर्म का  कोई नही मलाल।।आशीष जी बढ़िया दोहे ,बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 17, 2012 at 3:46pm

बहुत लाजवाब दोहावली कही है भाई आशीष यादव जी, बधाई।

Comment by आशीष यादव on May 17, 2012 at 12:34pm

आदरणीया rajesh kumari दी, aapko दोहे पसन्द आये मेरा श्रम सार्थक हुआ।
आपको सादर धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 17, 2012 at 12:13pm

आशीष जी बहुत सामायिक लाजबाब दोहे इन जबरदस्त दोहों के लिए मेरी मुबारकबाद स्वीकार कर्रें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 17, 2012 at 12:12pm

 आशीष जी बहुत सामायिक लाजबाब दोहे इन जबरदस्त दोहों के लिए मेरी मुबारकबाद स्वीकार कर्रें 

Comment by आशीष यादव on May 17, 2012 at 12:10pm

आदरणीय श्री SANDEEP KUMAR PATEL जी, आदरणीय श्री Bhawesh Rajpal जी, आदरणीय श्री SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" जी  एवँ आदरणीय श्री डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी, दोहे पसन्द करने हेतु आप लोगों को बहुत-बहुत धन्यवाद.

आज की गन्दी राजनीति में किसका भरोसा करें समझ मे ही नही आता। आज राजा जैसे लोग भी छूट जा रहे हैं और तो और बाहर आकर ऐसा दिखा रहे हैं जैसे युद्ध जीत लिया हो।

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on May 17, 2012 at 11:54am

आशीष जी बहुत सी समसामयिक , साहित्यिक , भावपूर्ण रचना .....इन दोहों ने तो आज की सच्चाई बयान कर दी । बहुत बहुत बधाई !!

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on May 17, 2012 at 11:49am

wah aashish ji bahut khoob kya manzar kashi ki hai apne ..................behtreen kakam hai badhayi kubool karein

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
15 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service