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मेरी दूसरी ग़ज़ल

दो सीधे से सवाल का जवाब दोस्तों ,
क्यों पी रही है मुझको ये शराब दोस्तों ,

मैने शराब पी थी गम भुलाने के लिए
बढ़ने लगी है क्यों मेरी अजाब दोस्तों,

माना कि पी गया मै जश्ने यार मे बहुत ,
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,

इतनी ही गर हसीं है ये प्याले की महेबुबा,
फिर क्यों मिला रहे सुरा में आब दोस्तों,

मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,

"बागी" ने अपना मान के कहा है धीरे से,
नासाज गर लगे तो है किताब दोस्तों ,

( अजाब = दर्द , आब = पानी , नासाज = असहमत )

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Comment by Vipul Kumar on June 25, 2012 at 9:22am

hmm...... Ganesh jee. maiN shayad kaafi waqt baad padh raha huN is ghazal ko. ab talak to aapko iske sabhi aib pata lag gaye honge. ya aap ijazat deN to maiN aagah karuN?


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 17, 2011 at 11:59am
धन्यवाद आशा दीदी |
Comment by asha pandey ojha on July 17, 2011 at 10:45am

bahut bhawatmk w dard se labrej bhawabhivykti Ganesh bhiya

 

Comment by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on April 27, 2011 at 5:26am

अत्यंत प्रभावोत्पादक "बागी जी"

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,
Comment by Madhuram Chaturvedi on November 10, 2010 at 4:58pm
डर है जिगर न दे कहीं जवाब दोस्तों ,
kya baat hain
Comment by Pooja Singh on September 29, 2010 at 12:10pm
गणेश जी ,
प्रणाम बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति है यह की {कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,} आपने बिलकुल सही कहा है , की ये जिन्दगी कई जन्मो के बाद मिलती है | इसलिए इस जिन्दगी को सही अर्थो में लगाया जाय| बढिया रचना है यह बधाई स्वीकार करे |
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 25, 2010 at 2:30pm
बागी जी , गज़ल मैंने पूरी पढ़ी है ,,, लेकिन कभी मजाक भी समझा करो मेरे दोस्त ... हर वक़्त मुंह लटकाकर जीना भी तो ठीक नहीं ... ;-)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 25, 2010 at 2:16pm
जोगिन्दर भाई, धन्यवाद, एक बार फिर से पूरी ग़ज़ल पढ़ ले,
Comment by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on September 25, 2010 at 2:05pm
बागी भाई ,,, प्याले की मुहब्बत ,,, आप भी कमाल करते हो दोस्त , पीकर भी इतना कह पाना कैसे कर पाए ? हा हा हा ...
Comment by BIJAY PATHAK on August 12, 2010 at 2:03pm
मैने जवानी जाम संग बितायी शान से,
चर्चा हुई बुढ़ापे की ख़राब दोस्तों ,

कितनी ही मिन्नतों के बाद जिंदगी मिली,
ना खाक में मिले ये माँ का ख्वाब दोस्तों,
Bahut khub 2 lajawab
Ek behtarin prastuti ke saath sandesh bhi

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