दूर मंजिल कब मिलेगी रास्ता कोई नहीं,
वो मुसाफिर हूँ कि जिसका रहनुमा कोई नहीं.
आशिकी में जो बने हैं आज मजनू देखिये,
है अजब ये चीज उल्फत खुशनुमा कोई नहीं.
दोस्ती से दिल मिला लो सामने है आइना,
दुश्मनी को दूर रक्खो है मज़ा कोई नहीं .
वो जो आये हैं यहाँ पर खिल गया है दिल मेरा,
आज सारे सुर लगे हैं बेसुरा कोई नहीं.
चाँदनी के बीच चंचल चाँद सा चेहरा लगे,
घर वो लाये जान पाये बावफा कोई नहीं.
आज किस्मत को सँवारे आज ही है कीमती,
आज तो बस आज ही है आज सा कोई नहीं.
आज 'अम्बर' आसमां है वो लगे धरती मेरी,
प्यार से ही प्यार उपजे दूसरा कोई नहीं.
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
चाँदनी के बीच चंचल चाँद सा चेहरा लगे,
घर वो लाये जान पाये बावफा कोई नहीं.
bahut hi behtarin...badhai ..Ambarish ji...
आज किस्मत को सँवारे आज ही है कीमती,
आज तो बस आज ही है आज सा कोई नहीं. !! khoob!
अर्थ पाती भावना है, बेमजा कोई नहीं. ............
बहुत-बहुत बधाई.
वो जो आये हैं यहाँ पर खिल गया है दिल मेरा,
आज सारे सुर लगे हैं बेसुरा कोई नहीं.
मन प्रसन्न हो तो सब अच्छा ही लगता है ..बहुत खूबसूरत गज़ल ...
सब्जियों पर भी अशआर गज़ब का लिखा है
धन्यवाद भाई बागी जी ! आपके सुझाव अनमोल हैं ........आपका हृदय से आभार मित्रवर ...........:-)
आपको एक शेर समर्पित कर रहा हूँ......
हैं हरी चम-चम चमकतीं चाँद सा चेहरा लगे,
घर जो लाये जान पाये ज़ायका कोई नहीं. अर्थात सब्जियाँ .......जय हो !!!!!..........हा हा हा हा हा हा ..............:-)
वसुधा जी! आपका स्वागत है ! गज़ल की तारीफ के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया !
अम्बरीश भाई, बहुत ही सुंदर ग़ज़ल आपने प्रस्तुत किया है, आ की मात्रा को काफिया बना बहुत ही खुबसूरत शे'र कहे है, बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल हेतु |
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