आँखों में आँख डाल रहे जो गुमान की,
यारों है उनको फिक्र जमीं आसमान की.
जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.
आयी जो मस्त याद चली झूमती हवा,
नज़रें मिली तो तीर चले बात आन की.
घायल हुए जो ताज दिखा संगमरमरी,
आई है यार आज घड़ी इम्तहान की.
आखिर वही हुआ जो लगी इश्क की झड़ी,
कुरबां वतन पे आज हुई जां जवान की.
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
धन्यवाद भाई सत्य जी !
good kya bat hai
स्वागत है भाई वीनस जी !
आप जैसे विद्वान की सराहना पाकर यह श्रम सार्थक हो गया है ! आपका हार्दिक आभार !
अम्बरीष जी
सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
स्वागत है आदरणीया सुनीता जी ! आपका तहे दिल से शुक्रिया ! वैसे ग़ज़ल की समझ तो मुझको भी नहीं है फिर भी ओ बी ओ मित्रों की संगति में यह सब हो ही जाता है ..इस लिए इस जिन्दादिली का सम्पूर्ण श्रेय मैं ओबीओ को ही देना चाहूँगा !...:-)
मुझे समझ नही है अभी गज़ल की मगर समझती हूँ जो बहुत अच्छा लगा शेर वही कह रही हूँ...
जिंदादिली का राज कलेजे में है छिपा,
खुद पे है ऐतबार खुशी है जहान की.
बहुत खूब!
शुक्रिया
आदरणीया आराधना जी आपने बिलकुल सच कहा है! ग़ज़ल की तारीफ के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया !
सादर, अम्बरीष श्रीवास्तव
aadarneey ambreesh ji,
ye ghumaan hi sab le doobta hai...'hum' aur 'aham' se pare jo dekh sakein wo aankhein bahut kam logon ko mayassar hain...
aap aise hi likhte rahein...bahut sundar,
saadar,
aradhana
स्वागत है भाई मापत पुरी जी ! आपका हृदय से आभार मित्र!
धन्यवाद कल्पना जी !
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