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जिज्ञासा (लघुकथा)

जिज्ञासा

पार्क से आते ही मोनू ने सवाल किया, ‘पापा, अपनी कार रात को झुग्गीवाले मुहल्ले में क्यों जाती है?’

बिजनेस के सिलसिले में?’

तो उसमें चढ़कर लड़कियाँ कहाँ जाती हैं?’

काम पर, बेटे।सेठ ने बेटे को संतुष्ट करना चाहा।

रात को कौन-सा काम होता है,पापा?’

ढेर-सारे काम हैं,बेटे।जैसे कॉल सेंटर वगैरह,जो रात को भी चलते हैं।

कॉल गर्ल का धंधा भी?’ बेटे ने जिज्ञासा जाहिर की।

क्या कह रहा है, बेटा? कहाँ सुना तुमने, यह सब?’ सेठ हड़बड़ाकर बोला।

रज्जुआ मिला था। बगल की झुग्गी का है।रोज की तरह पार्क के गेट पर बैठा था। अपनी कार देख रोने लगा। चिल्लाया, ‘यही वह कार है ...यही मेरी माँ को ले गई... वह फिर नहीं आई।

और क्या बोला,बेटा?’

जिसका काम अच्छा हो,उसे रख लेते हैं। कुछ और लड़कियाँ गईं, रह गईं। घरवालों को कुछ रुपल्ले मिले, मुझे नहीं।मोनू ने जो कुछ रज्जुआ से सुना था, सब बयां कर दिया।

कल हम दोनों पार्क चलेंगे।पता करेंगे कि क्या हुआ था?’

जी पापा।’

फिर पार्क के गेट पर कभी रज्जुआ नहीं मिला।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by Manan Kumar singh on November 1, 2022 at 8:32pm

आपका आभार आदरणीय बृजेश जी। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2022 at 6:52pm

आदरणीय मनन जी लघुकथा का सत्य को चित्रित करता हुआ विषय बहुत सटीक है...सादर

Comment by Mahendra Kumar on October 21, 2022 at 11:45am

बढ़िया लघुकथा है आदरणीय मनन जी। ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए। 

Comment by Manan Kumar singh on October 20, 2022 at 9:15am

आदरणीय लक्ष्मण भाई जी, आपका आभार। नमन। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 9:48pm

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Manan Kumar singh on October 16, 2022 at 3:30pm

आदरणीय रवि जी, आपका शुक्रिया। 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on October 16, 2022 at 1:27pm

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, नमस्कार। आपकी ये लघुकथा बहुत अच्छी लगी, इस पर आपको बधाई और शुभकामनाएँ!

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