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अद्भुत गुणों की खान... माँ

माँ सिर्फ जननी ही नही पालनहार भी होती हैं। संतान के जीवन को परिपूर्णता देने वाला माँ जीवन का संबल साया होता हैं। बच्चों के संघर्ष में कदम-दर-कदम साथ निभाती माँ का भरोसा आत्मविश्वास को कभी कम नही होने देती। अपने बच्चों के इर्द-गिर्द सपने बुनती माँ का स्पर्श तसल्ली देता हैं उसके कहे शब्द ,सीखे संकटमोचक बनकर हिम्मत देते हैं,ढांढस बँधाते हैं। प्यार-दुलार की बारिश करने वाली माँ भावनाओं का ऐसा अथाह सागर हैं माँ शब्द में पूरा संसार समाया हैं।अपने पूरे जीवन को समर्पित करने वाली माँ के त्याग अनमोल हैं। माँ एक सोच हैं जो ममता की विराटता से आकार ही नही देती बल्कि ज़िंदगी मुस्कराती हैं, विस्तार देती हैं।
हर सुख-दुख में आशीर्वाद बनकर रास्ता दिखाने वाली अद्भुत गुणों की भंडार माँ ज्ञान और अनुभवों का इनसाइक्लोपीडिया होती हैं।   
घर से लेकर सेना और अर्थव्यवस्था तक अपने साहस,रचनात्मकता,उद्यमिता से दशक-दर-दशक बदलाव की नई इबारत लिखती माँ ने परिवर्तन लाने की ताकत का लोहा मनवा लिया। लिंगभेद की मानसिक संकीर्णता पितृसत्तात्मक सोच के खिलाफ सपनों की उड़ान भर नए आयाम दिए। विधाता  की सर्वोत्तम विराट स्वरूपा माँ अनगिनत गुणों की खान विविधता में एकता की प्रतीक......  परिवार की धुरी बच्चे की प्रथम शिक्षिका जीजा वाई,पन्नाधाय बनकर ना केवल बहुआयामी व्यक्तित्व का विकास किया घर बैठकर ऑनलाइन ऑफिस के साथ घर भी सँभाला। अन्नपूर्णा की वचत की प्रवृति के अलावा हसुरा को फाउंडर की राजोशी घोष हो या महिला उद्यमी फाल्गुनी नायर, एयरपोर्ट की एटीसी अदिति अरोरा और संजुला इनके इशारों पर टेक ऑफ लैंडिंग होती हैं। देश की सबसे छोटी पाइलट मैत्री ,पहली चीफ जस्टिस नागरला,निर्मला सीतारमण,सुषमा स्वराज्य या घर की ज़िम्मेदारी भूमिका निर्वहन के साथ चीन सीमा पर सड़क बनाने की ज़िम्मेदारी उठाने वाली मेजर आईना....
मल्टीटास्किंग माँ खुद एक प्रबंधक का चिट्ठा रिश्तों के सम्बोधन में सबसे छोटा पहला शब्द माँ भविष्य को संबारने  वाली पुरुषवर्चस्व समाज की नायिकाएँ होती हैं। 
जैसा कि टी। टालनेज ने कहा हैं , 'माँ उस बैंक की तरह हैं जहां हम सारे दुःख-दर्द और परेशानियाँ जमा कर सकते हैं। ' बच्चों की हर वक्त सलामती की दुआएं मांगने वाली हर माँ की अपनी एक कहानी होती हैं.....
मातृत्व के समर्पण,त्याग और निःस्वार्थ प्रेम की मूरत एक ब्रिटिश माँ मैरी वोरटले ने चेचक जैसी  महामारी के खिलाफ पुनीत प्रयास करके विश्व को पहला टीका दिया था वही आज कोरोना काल में भारत की बायोटेक कंपनी की डायरेक्टर, सुचित्रा इला ने अपने पुनीत प्रयास से भारत की पहली स्वदेशी वैक्सीन दी। त्यागमयी माँ सारा गिलबर्ट,रिसर्चर एस्ट्रोजन वैक्सीन देवलप कर अपने तीन जुड़वा बच्चों पर ट्रायल किया। कम समय में अधिक काम अत्यधिक दवाब में शांत चित रहने वाली वैक्सीन डिस्कवरी और ट्रांसलेशन मेडिसिन विभागाध्यक्ष हनेक शूटमेकर ने जॉन्सन वैक्सीन बनाई जिसकी दो खुराक के बदले एक ही खुराक काफी हैं। इम्युनोलोजिस्ट और वयोटेक की मुख्य चिकित्सा अधिकारी ओजलें ट्ररेसी ने फाइजा वैक्सीन बनाकर कोरोना रोगियों को राहत का विकल्प दिया। 
शब्दों और अर्थों में ना समाने वाली माँ 66 वर्षीया कैटलीन कैरिको ने मॉडर्ना की उस साम्य वकालत की जब एम आर एन ए तकनीकी को अव्यवहारिक आइडिया माना जा रहा था। आज इस तकनीकी पर विकसित फाइजर और माडर्ना सबसे ज्यादा असरकारक पाई गयी। भारतीय मूल की अमेरिकन अरूना सुब्रह्मर्यम के नेतृत्व में कोविड-19 के खिलाफ रेमडेसवीर वैक्सीन एंटीवायरल मेडिसिन का क्लिनिकल ट्रायल हुआ। 
भारतीय संस्कृति में धरती,प्रकृति,गौ को माँ की श्रेणी में रखा जाता हैं।  बिना कहे सब दुःख समझने वाली कोरोनाकाल में चंडीगढ़ पीजी में माँ अपनी दस माह की कोरोना संक्रामित बेटी के साथ पूरी सावधानी अपनाते हुये बची रही।माँ की ममता भेद नहीं करती। मां सी मां .....मैं तेरी माँ तो नहीं लेकिन तुझ से जुड़ गया नाता....सिर्फ जन्म देने से ही मातृत्व का एहसास नही होता .....जयपुर महिला चिकित्सालय में नवजात शिशुओं की मांओं को जब कोरोना हो गया तब  चिकित्सालयों की नर्सों ने जितना वक्त मिलता भरपूर लाड़ लुटाती बच्चों पर..... । 
  परिभाषाओं से परे माँ सर्वस्व लुटाकर जीवन को सींचती ईश्वर का अनमोल तोहफा प्रकृति की माँ सौ वर्ष की उम्र पार बरगदों की माँ सालुमरादातिम्मक्का कर्नाटक के तुमकुट जिले की रहने वाली ,400 से अधिक बरगद के पेड़ लगाकर अपनी संतान की तरह पोषा।      
खुशनुमा आँचल में सीखें कड़वी दवा से लेकर मजेदार लोरिया सुनने वाली मां जे के रोलिंग ने अतुल समरिद्धी का आधार बना हेरी पॉटर रचा। 
जैसा कि सोजोर्नर ट्रुथ का कथन हैं कि अपने सही अधिकारों की रक्षा के लिए किसी से भी लड़ने या टक्कर लेने से मत घबराओ...ये जज्बा और हिम्मत दिलाने वाली माँ जिसके शब्द में बसे प्यार को तोला नही जा सकता ....उसकी अहमियत को,भावों को,अहसास को पर्दे पर उतारने वाली कई फिल्में जिनमे पूज्यनीय माँ,आशीर्वाद बरसती ,उदारता,सहनशीलता,समर्पण,त्याग।निःस्वार्थ प्रेम के प्रतिमान गढ़ती फिल्मों में माँ की भूमिका को उकेरा। असल जिंदगी में माँ की भूमिका निर्वहन करने वाली नायिकाओं ने पर्दे पर अपनी सशक्त छवि को निभाया। सामाजिक परिस्थितियों का फिल्मों कि माँ पर गहरा असर पड़ा। मुगले आजम,औरत,मदरइंडिया की माँ जो समाज से टकरा जाने वाली तंगहली से जूझते परिवार को संबल देती हैं। हमारी संस्कृति में बसुंधरा से पुकारे जाने वाली माता मदरइंडिया में अपनी खेत को जोतते,सींचते दर्शाई गई । दीवार फिल्म का 'मेरे पास माँ हैं 'अविस्मरणीय डायलॉग हैं जिसमें पैसे में मदहोश बेटे को सही रास्ते पर लाने के लिए वो प्रकृति के नियम के विरुद्ध अपने मातृत्व का गला घोंट निष्प्रभ होकर मुंह मोड लेती हैं।जैसा कि मैक्सिम गोर्की का वक्तव्य हैं कि केवल माँ ही भविष्य के बारे में सोच सकती हैं क्योकि वही तो भविष्य को जन्म देती हैं। अपनी पारंपरिक भोली-भाली,दुखियारी वात्सल्यमयी भूमिकाओं के साथ बदलते वक्त में नई परते जुड़कर उन्हे सशक्त भूमिका में दर्शाया।   
दुर्गा खोटे,रीमा लागू, आशा सचदेव ,ललिता पँवार , लीला मिश्रा,नूतन,फरीदा जलाल,रत्ना पाठक,श्रीदेवी,स्मिता जयकर,शीबा चड्डा,सुप्रिया पाठक  सपोर्टिंग भूमिका से हटकर समानान्तर भूमिका बदलते दौर के साथ नई सोच से लबरेज सशक्त स्वनिर्णय भूमिका देती हैं।शुरू में देवी स्वरूपा सद्गुणों के प्रतिमान के रूप में आत्मबलिदानी ,सिलाई मशीन पर खाँसने वाली विधवा माँ,अथक परिश्रम करने वाली मिलनसार हंसमुख माँ स्टीरियोटाइप भूमिका से हटकर सामाजिक रूप से जाग्रति लाने सवाल करने लगी हैं। बाला,शुभमंगल सावधान की माँ बनी सुनीता राजवर,बाहुबली की शिवगामी रमईया,मॉम की माँ बनी श्रीदेवी बेटी के साथ दुष्कर्म करने वालों का अपने हिसाब से बदला लेती हैं। अपनी सशक्त भूमिका के जरिये समाज के दक़ियानूसी और प्रशासनिक अव्यवस्थाओं पर उंगली उठाने का साहस करती हैं। 
प्यार और खुशी की लहर लाने वाला शब्द माँ केवल जन्म देने वाली ही नही होती बल्कि जिससे माँ जैसा रिश्ता हो वो भी माँ होती हैं। सास-बहू,माँ-बेटी की तरह अपने रिश्ते में मजबूती देने के लिए प्रेरित करती फिल्म सोलमदर में बहू अपने भाई के साथ मिलकर साथ के साथ न रहने का प्रपंच रचती हैं पर समय के साथ उसे अपने व्यवहार पर पछतावा होता हैं। बच्चे कितने भी बूढ़े हो जाए पर माँ के लिए वो बच्चे ही होते हैं माँ फिल्म जिसमें तीन विषयों पर बात उठती हैं- बेटा-बेटी में भेद, ताउम्र घर संभालने माँ का कोई अस्तित्व नहीं और बच्चों ए लिए माँ की चिंता। जैसा कि ओलिवर वेंडल ने कहा हैं कि युवावस्था बीत जाती हैं ,प्रेम की बेल मुरझा जाती हैं,रिश्ते अपनी उजास खोने लगते हैं लेकिन माँ की आशाएँ,उनका प्यार बेमियाद होता हैं। 
पहला निवाला बच्चों को खिलाने से लेकर खुशियों का घ्यान रखने वाली माँ बिना कहे ख़्वाहिशों को पूरी करती हैं अबोली आहट से लेकर नवागत के अवतरण के बाद भी आजीवन चिंता की कोंपले  फिल्म स्पेशल डे में दिखाया हैं, भावुक कर देने वाली फिल्म जिसमे वो अपने बेटे के जन्मदिन की तैयारी कर रही होती हैं और बेटा भूल ही जाता कि माँ घर पर उसका इंतजार कर रही हैं ,वो  अपने दोस्तों के साथ जन्मदिन बना रहा होता हैं ।  
संसार के सारे सुखों की शुरुआत और अंत माँ के प्रेम में ही हैं। वो जन्नत का फूल,खिली धूप में साया,वात्सल्य की मूरत किस्में पूरा ब्रह्मांड समाया जैसा कि मुनब्बर राणा ने लिखा हैं कि उसके ओंठों पर कभी बददुआ नही निकलती,बस एक माँ हैं जो कभी खफा नही होती। अहिर्निसम बच्चों की चिंता में अपनी ओर कभी ध्यान नहीं देती जिंदगी के फैसले और रिश्तों के मायने बच्चों को जीना सिखाती हैं। बेटी के प्रति चिंतित करने वाली माँ केले जाने नही देती । दोहरी भूमिका निर्वहन करी माओं पर बनी फिल्म ज़िंदगी की आइटनरी हैं।          
व्याख्या नही की जा सकती... शब्दों की अनंता....नियमों से परे शांत, गंभीर,उदार अथाह नीले समंदर-सी गहराई वाली माँ के प्रति श्रद्धाभाव दिवस बनाकर नही जाता सकते। माँ शब्द में बसे प्यार को शब्दों से तोला नही जा सकता बस अपने भावों को एहसास कर सकते हैं। जैसा कि माया एंडालाओ ने कहा हैं कि अपनी माँ को परिभाषित करना चाहूँ तो कहना होगा एक तूफान जो अपनी शक्तियों पर पूरा नियंत्रण रखना जनता हैं या कहूँगी कि किसी इंद्रधनुष से टपकते रंगों का मेला...! 
आधुनिकता की दौड़ में भागते बच्चे माँ के नाम का मनका अपनी उपलब्धियों की माला में गूंथना भूलता-सा जा रहा हैं। तकनीकि से जुड़े बच्चे दोस्तायारों में खोये भूल गए,फिल्म मदर्स में दर्शाया हैं उस माँ को जो पहली शिक्षिका,दोस्त पहला जुड़ाव,उसी से जुड़ा होता हैं। माँ के सुझावों,सीखों को भाषण समझने वाले बच्चे की चिंता से बेफिक्र अपनी ही दुनिया में मस्त हैं। पॉकेट मनी फिल्म में बच्चों की पीछे से चिंता,फिक्र में माँ आत्मनिर्भर होकर बच्चों को अपने से बांधने का एक जरिया ढूंढ लेती हैं। 
थपकी,लॉरियों में सपनों की दुनिया घुमाने वाली चाँद-तारे तोड़कर लाने वाली माँ को भूलते जा रहे हैं। तस्वीर फिल्म में ऐसी तस्वीर से बाहर निकल वास्तविकता से परिचय कराती हैं।माँ की थपकी सपनों को पूरा करने का आशीर्वाद देती हैं। खुली आँखों के सपनों के पीछे भागते बच्चों के सपने अधूरे रह जाते हैं.....अधूरी नींद,अधूरा सपना.... माँ की हर बात बुरी लगती हैं पास रहती हैं तो कद्र नही करते लेकिन जब जब बच्चे उसकी जगह आते हैं तब बहुत देर हो चुकी होती हैं। ऐसा ही माँ कहती हैं फिल्म में दर्शाया हैं कि जब बच्चे माँ जैसा व्यवहार करने लगते हैं तो चुभन होती हैं। मन को झिंझोड़ती चुभने वाली सोचे दिल को छूने वाले दृश्य फिल्म माँ नही बोलती में दिखाये हैं जिसमें दूर बैठे बच्चे की चिंता हैं पर कुछ नही बोलती। दूर रहकर भी पसंद का ख्याल रखती हैं। बचपन में हर पल बच्चे का ख्याल रखने वाली माँ का बच्चे बड़े होकर एक काम समझ लेते हैं।ता उम्र आशीर्वाद देने वाली माँ की जीवटता विकट से विकट परिस्थितियों में संघर्ष करती हैं पर पलायन नही करती।  फिर भी ओनोर दे बाल्जक के शब्दों में- माँ का हृदय एक गहरी खाई की तरह हैं जिसके ताल में आपकों हमेशा क्षमाशीलता मिलेगी। 
   पुनश्च  नए भारत का निर्माण करती माएँ कारोबार,विज्ञान,हेल्थ,कला,खेल, प्रबन्धन हर क्षेत्र में उनके अतुलयनीय अद्धभुत योगदान ना केवल घर बल्कि राष्ट्र निर्माण और विकास में हैं। इस बदलाव की बयार में सफलता की प्रतिमूर्ति अपनी कर्मठता ,सृजनशीलता से लोकतन्त्र की उपलब्धि के लिए अपरिहार्य हैं।अतः माँ शब्द से शुरू होता और खत्म होता असीम प्यार ...सुधा मूर्ति के शब्दों में- अगर आपके पास पैसा हैं तो उसका सदुपयोग करे। माँ ही बच्चों के विचारो को सही दिशा देती हैं। जीवनदायनी के ऋण से कभी उऋण नही हो सकते हैं जिनेके घरों में माँ होती हैं वहाँ हर चीज होती हैं क्योकि माँ और मातृभूमि का स्थान सबसे ऊंचा होता हैं। 
मातृत्व दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ......

स्वरचित व अप्रकाशित हैं। 

बबीता गुप्ता 

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2022 at 11:31am

आ. बबीता बहन, सादर अभिवादन। माँ की महिमा का सुन्दर प्रस्तुतीकरण किया है । हार्दिक बधाई.

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 8, 2022 at 1:03pm

मुहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब, मातृ दिवस पर माँ की महिमा का आपने यद्यपि विस्तार पूर्वक बख़ूबी से बखान किया है फिर भी माँ की ममता और  करुणा अतुलनीय है जिसको शब्दों में व्यक्त करना आसान नहीं है, बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें। सादर। 

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