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पलछिन

अम्मा जी को आज अस्पताल में भर्ती हुये दस दिन हो गये थे। दौड़ी आई अलविदा होती अम्मा की बेटी की बातों  और दिन-रात उनकी सेवा करती दोनों बहुओं ने मिलकर अपनी बूढ़ी अम्मा को भला चंगा कर दिया।

झाईयों से झांकती मुस्कान के साथ बेटी-बहुओं  के खिलखिलाते चेहरे… हंसी-मजाक में … सुकून के पल चुराती… एक-दूसरे को देख जैसे कुछ चटककर हंसी में खनखना जाता। 

मरीजों का हाल-चाल पूछते डाॅक्टर साहब ने जब अम्मा जी की रिपोर्ट देखी तो सिरहाने खड़ी बेटी और अम्मा जी के पांव दबाती  रिद्धी-सिद्धी- सी बहुओं की ओर मुखातिब होकर कहा।

'आप दोनों  की सेवा ने उखड़ती सांसों में जान डाल दी।बस ,अब अपनी अम्मा जी को शाम तक घर ले जा सकते हैं। क्यों अम्मा जी! घर पर बहुओं के हाथ के गर्मागरम फुलके खाना।'

डाॅक्टर साहब की बात सुन अम्मा जी के दोनों बेटों के चेहरे खिल गये।

'थोड़े दिन और अच्छे से आपकी देखरेख में इलाज हो जाता तो…! '

 बेटी-बहुयें… एकस्वर में कही बात सुन एक-दूसरे को देखने लगी। 

 डाॅक्टर के नकारने पर खुश हुई बेटी और बहुओं के चेहरे सोचते हुये म्लान हो गये…दायरों की देहरी सोचकर…. अंगुली पर गिनाये जाने वाले ये सुकून के पल … फिर से छिन जायेंगे!   

 बबीता गुप्ता

स्वरचित व अप्रकाशित हैं। 

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