For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की - ज़ुल्म सहना छोड़ कर इन्कार करना सीख ले

ज़ुल्म सहना छोड़ कर इन्कार करना सीख ले
है अगर ज़िन्दा पलटकर वार करना सीख ले.   
.
एक नुस्ख़ा जो घटा देता है हर दुःख की मियाद
सच है जैसा वैसा ही स्वीकार करना सीख ले.
.
मज़हबों के खेल में होगी ये दुनिया और ख़राब 
अपने रब का दिल ही में दीदार करना सीख से.
.
तन है इक शापित अहिल्या चेतना के मार्ग पर
राम सी ठोकर लगा.. उद्धार करना सीख ले.
.
नफ़रतों की बलि न चढ़ जाए तेरी मासूमियत
मान इन्सानों को इन्सां प्यार करना सीख ले.
.
लग न जाए दाग़ इस दुनिया का तेरी रूह पर
बिन छुए इसको ये दरिया पार करना सीख ले. 
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 936

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 8, 2021 at 6:17am

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन समझाइस वाली बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 7, 2021 at 11:02pm

धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब ..
आप को इन दो मिसरों में लय बाधित लग रही है तो कुछ ऐसा उपाय कीजिये पढने में कि लय बाधित न लगे..
आप शायद और को अबतक उर पढ़ना नहीं सीखें हैं और यकीनन बलि को बली पढ़ रहे हैं..
आशा करता हूँ कि आप अधिक से अधिक ग़ज़लें पढ़ेंगे और किस तरह पढ़ा जाता है वह आर्ट सीखेंगे..
वैसे आपके लिए इससे पहले वाली ग़जल आसान बहर में कही है..उसे भी देख लें.. पढने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी ..
.
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 7, 2021 at 10:57pm

धन्यवाद आ. दयाराम मेठानी साहब 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on November 7, 2021 at 10:36pm

आदरणीय निलेश जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें। 

"और ख़राब होगी ये दुनिया मज़हबों के खेल में" और 

"नफ़रतों की बलि न चढ़ जाए तेरी मासूमियत" मिसरों में लय बाधित लगी मुझे। 

Comment by Dayaram Methani on November 7, 2021 at 9:18pm

बहुत ही लाजवाब एवं दमदार ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service