हमें पाकर भी उन्हें क्या मिलेगा
पल भर की खुशी फिर रोज़ हीं जलेगा
चाहे कहे या ना कहे वो होठों से मगर
ये सिलसिला तो अब रोज़ हीं चलेगा
नही पता उसने ऐसा क्यों किया
हमें जानकर भी अपना दिल क्यों दिया
ज़ख़्म उसे सुकून देते हैं शायद
तभी उसने दर्द से अपना दामन भर लिया
मेरी लाख लानतों के बाद भी
क्यों वो हर रोज़ चला आता है
लगता है उसे मेरे शौक पसंद है
तभी हर रोज़ मज़ा देने आता है
कोई इतना ग़म कैसे ढो सकता है
बंज़र दिल मे प्यार के बीज बो सकता है
बस एक हमारे सुकून की खातिर
हर बार वो हमसे रुसवा हो सकता है
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
Comment
@योगराज प्रभाकर,
श्रीमान, मेरी गलतियोंं से मुझे अवगत करवाने के लिये अपका आभार।
मैं आगे से ज्यादा ध्यान लगाकर लिखने की कोशिश करुंगा।
@समर कबीर साहब,
सबसे पहले तो मैं आप से क्षमा चाहुंगा क्युंकि शायद मैने अपने पहले टिप्पणी मे आपका नाम गलत लिख दिया था।
बाकी हौसला बढाने के लिये अपाका दिल से धन्यवाद।
भाई मनोज कुमार अहसास जी. इन शब्दों को हिज्जे ग़लत थे, इसलिए लेखक को बताने के उद्देश्य से मैंने इन्हें बोल्ड कर दिया.
जनाब अमन सिंहा जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
@Manoj Kumar Ahsaas महोदय टिप्पणी के लिये धन्यवाद। मैं आपको ये बाताना चाहुंगा की मैं काव्य लिखने के विषय मे आपके तरह अनुभवी नही हूँ। सच कहूंं तो मैं किसी भी विधा से अवगत नही हूँ। मगर मैं इतना जरूर बता सकता हूँ की ये हाईलाइटेड शब्दों मेंं मेरा कोई हाथ नही है । ये एक प्रोग्राम से दुसरे प्रोग्राम मे कापी करते समय हुई तकनिकी गडबडी जान पडती है। मैं आगे से इस बात का ध्यान रखुंगा। आपके सुझाव और प्रतिक्रिया का सदैव स्वागत रहेगा।
धन्यवाद
अमन सिन्हा
प्रस्तुति के लिए हार्दिक स्वागत आदरणीय कृपया यह बताने का कष्ट करें यह कौन सी विधा है आपने किस विधा में रचना की है तथा यह जो आपने हाईलाइट किए हैं शब्द इसका क्या कारण है सादर
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