For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भारत की जब बात है होती,ज्योति मेरे दिल की है जलती

कितना सुंदर देश है मेरा,कितनी पावन रीति यहाँ की

घर घर मंदिर गुरुद्वारा है,सबके बीच परस्पर प्रीती

संतोष बड़ा धन है जीवन में,सिखलाती ये अपनीसंस्कृती

नहीं थोपते धर्म किसी पर,ना ज़िद कोई विश्व विजय की

खुश हैं हम अपनी धरती पर,नहीं चाहिए ज़मीं दुजे की

स्वयं जियो और जीने दो,भारत का सिद्धांत यही

विश्व संस्कृती को अपनाते,वसुधैव कुटुंबकम है येही


मौलिक/अप्रकाशित

      वीणा

Views: 448

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Veena Gupta on June 28, 2021 at 4:21am

स्नेही चेतन जी,धामी जी,एवं समीर जी आप सभी का बहुत बहुत आभार.चेतन जी आपके सुझाव का स्वागत है आगे भी अपना योगदान देते रहें 

Comment by Veena Gupta on June 28, 2021 at 4:09am

चेतन जी ्

Comment by Chetan Prakash on June 27, 2021 at 10:49pm

आदरेया, सार्थक  भावपूर्ण  रचना और वो भी काफिया  बन्दी में  , पंक्तियाँ चाहे दो दो की इकाई  में हो, कविता हो नहीं गीत  भी हो' सकती हैं ! सो, किसी अंश को चौपाया  बनाने के  लिए  आप अनावश्यक  वर्तनी दोष  से बच सकती हैं ! यथा ' प्रीति' को प्रीती  और,' स॔स्कृति' को स॔स्कृती ! सादर !

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 27, 2021 at 9:28pm

आ. वीणा जी, अभिवादन। अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on June 27, 2021 at 12:03pm

मुहतरमा वीणा गुप्ता जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service