For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (निगलते भी नहीं बनता उगलते भी नहीं बनता)

1222-1222-1222-1222

निगलते  भी  नहीं  बनता  उगलते  भी  नहीं  बनता 

हुई  उनसे  ख़ता  ऐसी   सँभलते  भी   नहीं  बनता 

इजारा  बज़्म  पे ऐसा  हुआ  कुछ   बदज़बानों  का

यहाँ रुकना भी ज़हमत है कि चलते भी नहीं बनता 

जुगलबंदी हुई जब से ये शैख़-ओ-बरहमन की हिट

ज़बाँ  से शे'र  क्या  मिसरा निकलते भी नहीं बनता 

रक़ीबों को  ख़ुशी  ऐसी मिली हमको  तबाह करके

कि  चाहें  ऊँचा उड़ना  पर  उछलते भी नहीं बनता 

ख़ुद अस्मत नोच  के  ख़ुद ही जताते  झूटी  हमदर्दी 

जहाँ  में  ऐसे  लोगों  से तो  मिलते भी  नहीं  बनता 

रफ़ू करना भी मुश्किल है लगा जो ज़ख्म इस दिल पर

गरेबाँ  चाक   ऐसा  है  कि  सिलते  भी  नहीं  बनता 

ज़मीं  के  तिफ़्ल  होकर  वो  करें  दावा  ख़ुदाई  का

बिना रब की  रज़ा  के जिनसे हिलते भी नहीं बनता 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

 

Views: 797

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 7, 2020 at 9:28pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया। प्रतिक्रिया में विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ। सादर। 

Comment 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 7, 2020 at 9:26pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया। प्रतिक्रिया में विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ। सादर। 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on November 9, 2020 at 7:08pm

आ. अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन 

अच्छी ग़ज़ल हुई है,  बधाई स्वीकारें 

  

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 3, 2020 at 8:26pm

वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है अमीरुद्दीन जी...बधाई

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 29, 2020 at 11:11am

आदरणीय चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिए मशकूर हूँ, क्रिया विशेषण पर आपकी राय अनुकरणीय ह, तामील बजा लाता हूँ और आपको एक बार फिर से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। सादर। 

Comment by Chetan Prakash on October 28, 2020 at 10:04pm

अच्छी ग़ज़ल हुई, 'अमीर' साहब, बधाई ! हाँ, मतला, आपका अतिरिक्त ध्यान माँगता लगता है, शायद, रब्त का अभाव है। आप खुद दोहराएंगे तो स्पष्ट हो जाएगा। कहना न होगा, मतला ग़ज़ल का सबसे प्रमुख कथ्य होता है। अतः स्वयंमेव स्पष्ट होना चाहिए। कदाचित अगर आप मतले के सानी मिसरे में क्रिया विशेषण कैसी के बजाय ऐसी रख लें तो भाव स्वतः स्पष्ट हो जाएगी, इति।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 28, 2020 at 8:45pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, सुख़न नवाज़ी, हौसला अफ़ज़ाई और तनक़ीद के लिए बेहद मशकूर हूँ। मुहतरमा दूसरे शे'र में ख़फ़ीफ़ तक़ाबुल-ए-रदीफ़ (ऐसा तक़ाबुल-ए-रदीफ़ जिसे कहने या पढ़ने से रदीफ़ होने का भ्रम न हो) नज़र-अन्दाज़ करने के क़ाबिल है। ग़ज़ल के मतले में क़ाफ़िया "लते" सेट किया गया है जिसका निर्वहन पूरी ग़ज़ल में किया गया है अख़ीर के तीनों अशआर में भी। उम्मीद है बात पहुँची होगी। सादर। 

Comment by Rachna Bhatia on October 28, 2020 at 3:14pm
  1. आदरणीय अमीरुद्दीन'अमीर'जी आदाब। बेहतरीन ग़ज़ल हुई।बधाई। आदरणीय दूसरे शे'र में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ है । आख़िरी तीनों अश्आर में शायद क़ाफ़िया बदल गया है। सादर।
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 27, 2020 at 10:30am

आदरणीय लक्षमण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया। सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 27, 2020 at 7:49am

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह-मुकरी * प्रश्न नया नित जुड़ता जाए। एक नहीं वह हल कर पाए। थक-हार गया वह खेल जुआ। क्या सखि साजन?…"
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
18 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
20 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
21 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
yesterday
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service