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ग़ज़ल (महबूब ज़िन्दगी)

2212 - 1212 -  2212 - 12 

.

मुश्किल सहीह ये फिर भी है महबूब ज़िन्दगी

रब  का हसीन  तुहफ़ा  है क्या  ख़ूब ज़िन्दगी

.
आजिज़  हैं  ज़िन्दगी  से जो वो भी  मुरीद हैं
तालिब  सभी  हैं  इसके  है  मतलूब ज़िन्दगी

.

हर  लम्हा  शादमाँ  है  तेरे  दम  से  दिल मेरा
जब  से  हुई  है  तुझसे  ये   मन्सूब   ज़िन्दगी

.

जिसने  नज़र  उठा  के  भी  देखा  नहीं  मुझे 
उस  पर  हुई   है   देखिए   मरग़ूब   ज़िन्दगी

.

लोगों के दिल में जा बसो कर जाओ काम वो
सदियाँ  पढें  तुम्हारी   ही  मक्'तूब   ज़िन्दगी

.

ग़ालिब न  हो सको  न हो इतना  मगर  सुनो
हो   जाए   न  तुम्हारी   ये   मग़्लूब  ज़िन्दगी

.

अब   ज़िन्दगी   उजाड़    है   तेरे   बग़ैर   यूँ
जैसे    बग़ैर   जान   सी   मस्लूब    ज़िन्दगी

.

या  रब  तू  ले उठा  मुझे  या  कर दे सुर्ख़-रू
कब  से  उठाए  फिरता  हूँ  मायूब  ज़िन्दगी

.

इस ज़िन्दगी में कुछ भी दिलआवेज़ अब नहीं
बस  मैं  हूँ  और  मेरी  पुर-आशोब   ज़िन्दगी

.

बस आगे इसके अब न कुछ भी मुझसे पूछिये
शर्मिंदा  हूँ  मैं  ख़ुद  भी  है  महजूब ज़िन्दगी

.

कब जानता है वक़्त का कोई मिज़ाज 'अमीर'
हो  जाए  पार  कब  या  जाए   डूब  ज़िन्दगी

"मौलिक व अप्रकाशित"

---------------------------------------------------------

कठिन शब्दार्थ : महबूब - प्यारी, प्यारा, Beloved आजिज़ - तंग, परेशान 

मुरीद - आज्ञाकारी, आस्थावान, आकांक्षी, अभिलाषी, निष्ठावान 

तालिब - चाहनेवालेे, इच्छुक मतलूब - अभीष्ट, जिसकी चाहत हो

शादमाँ - ख़ुश, प्रसन्न मन्सूब - engage with, किसी के नाम समर्पित हो जाना 

मरग़ूब - जिसकी तरफ़ रुचि हो, फेवरिट, Desirable मक्'तूब - लिखित, लेख

ग़ालिब - predominate, प्रबल, विजेता, मग़्लूब - हताश, निर्बल, दबाया हुआ

मस्लूब - नष्ट-भ्रष्ट, वंचित, सूली पर चढ़ी सुर्ख़-रू - कामयाब, अविचलित, शांत, स्थिर 

मायूब - निकृष्ट, दूषित, ऐब से भरी, क़ाबिल-ए-शर्म दिलआवेज़ - मनभावन, ख़ुशी देने वाली 

पुर-आशोब - Mischievous, अशांत, उतार चढ़ाव भरी, घबराहट भरी, Tumultuous 

महजूब - लज्जित, शर्मिंदगी भरी, full of the shame. 

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 6, 2020 at 7:34pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से मशकूर हूँ। सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 6, 2020 at 6:56pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई । 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 6, 2020 at 1:49pm

आदरणीय सुशील सरना साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से मशकूर हूँ जनाब। सादर।

Comment by Sushil Sarna on October 6, 2020 at 12:28pm
आदरणीय अमीरुद्दीन जी, आदाब, खूबसूरत अहसास की खूबसूरत गजल, ,,दिल से मुबारक कबूल फरमाएं सर

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