For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (वो नज़र जो क़यामत की उठने लगी)

फ़ाइलुन -फ़ाइलुन - फ़ाइलुन -फ़ाइलुन
2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2 - 2 1 2


वो नज़र जो क़यामत की उठने लगी 

रोज़ मुझपे क़हर बनके गिरने लगी

रोज़ उठने लगी लगी देखो काली घटा
तर-बतर ये ज़मीं रोज़ रहने लगी

जबसे तकिया उन्होंने किया हाथ पर
हमको ख़ुद से महब्बत सी रहने लगी

एक ख़ुशबू जिगर में गई है उतर
साँस लेता हूँ जब भी महकने लगी

उनकी यादों का जब से चला दौर ये
पिछली हर ज़ह्न से याद मिटने लगी

वो नज़र से पिला देते हैं अब मुझे
मय-कशी की वो लत साक़ी छुटने लगी

अब फ़ज़ाओं में चर्चा  यही आम है
सुब्ह से ही ये क्यूँ शाम सजने लगी

दिल पे आने लगीं दिलनशीं आहटें

अब ख़ुशी ग़म के दर पे ठिटकने लगी

लौट आए वो दिन फिर से देखो 'अमीर' 

उम्र अपनी लड़कपन सी दिखने लगी

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 2313

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on September 8, 2020 at 10:22pm

अमीरूद्दीन साहिब

किसी शब्द के मूल रूप का अंतिम व्यंजन हर्फ़-ए-रवी होता है.यथा चलना चल + ना में ' हर्फे-रवी है (मूल शब्द चल का आखिरी अक्षर)

आप कह रहे है ए है .जनाब मेरी जानकारी के मुताबिक आपके मतले के ऊला में ठ और सानी में ढा है. उस्ताद जी की इस्लाह का मैं भी मुंतज़िर हूँ. हुजूर अन्यथा न लें.

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 8, 2020 at 10:09pm

मुहतरम उस्ताद समर कबीर साहिब, आपकी ज़र्रा-नवाज़ी का शुक्रगुजा़र हूँ जो मुझ अहक़र को अपने बेशकी़मती वक़्त में से इतना वक़्त इनायत फ़रमाया। हुज़ूर मेरे नाक़िस इल्म के मुताबिक़ इस ग़ज़ल में हर्फ़-ए-रवी "न" (ن) है। सादर। 

Comment by Samar kabeer on September 8, 2020 at 8:02pm

मुहतरम, अब भी क़वाफ़ी दुरुस्त नहीं हुए ।

हर्फ़-ए-रवी नहीं है इनमें, ग़ौर करें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 8, 2020 at 4:41pm

आदरणीय जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और तनक़ीद के लिये बेहद शुक्रिया जनाब। आपने सहीह फ़रमाया एक ग़लती की वजह से ग़ज़ल में जो कई खा़मियांँ नमुदार हो गईं थीं जो सभी एक दुरुुस्तगी से शायद दूर भी हो गईं हैं,

फिर भी सभी गुणीजनों से आलोचना आमंत्रित हैं जिसके लिए मैं आप सभी का हार्दिक आभारी रहूँगा। सादर। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 8, 2020 at 4:37pm

आदरणीय जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सृजन के भावों को मान देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। 

Comment by Chetan Prakash on September 8, 2020 at 9:06am

 'अमीर' साहब ग़जल सम्पादन की मुन्तज़िर हैः रोज़ उठने लगी लगी देखो काली घटा । बाकी तो मोहतरम कबीर समीर साहब, बतला ही चुके है। फिर भी कहन दिल को छू गया, भाव के स्तर पर आप बधाई के पात्र हैं।

Comment by सालिक गणवीर on September 7, 2020 at 11:41pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर 'साहिब

आदाब

जैसा कि उस्ताद-ए-मुहतरम ने कहा है आपके मतले में ही क़ाफ़िया दोष है आदरणीय.

उठने में मूल शब्द उठ है और गिरने में गिर ,इसमें तुकबंदी नहीं है. आपने मक़्ते में भी खटखटाने  क़ाफ़िया का इस्तेमाल किया है जो दोषपूर्ण है. गुस्ताखी मुआफ़.

Comment by Samar kabeer on September 7, 2020 at 7:57pm

जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' जी आदाब, आपकी ग़ज़ल के क़वाफ़ी दुरुस्त नहीं हैं, देखियेगा ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 6, 2020 at 3:33pm

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, दाद और मुबारकबाद के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। सादर।

Comment by Dimple Sharma on September 6, 2020 at 2:54pm

आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब आदाब,ग़ज़ल का हर शेर कमाल हुआ है आदरणीय बधाई स्वीकार करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
8 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service