For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Vinay Prakash Tiwari (VP)'s Blog (5)

कामोदसामन्त : विनय प्रकाश

शायद अब इच्छाओं का अंत हो रहा है

यह सीमित शरीर अब अनंत हो रहा है

रे मन अचानक तुझे ये क्या हो गया है

खिलखिलाता था तू अब कुमंत हो रहा है

खुशियां बहुत सी बटोरी थी हमने भी

हर यादगार लम्हा अब अश्मंत हो रहा है

करीबी रिश्तों का मेरे मन के साथ सजाया

हर विचार शायद अब उमंत हो रहा है

करंड की भांति हर शरीर धरा पर मेरा भी

शहद या धार चली गई अब अस्वंत हो रहा है

मेरा चंचल मन जो नरेश था मेरे निर्णयों…

Continue

Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on July 7, 2020 at 10:00am — 1 Comment

प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए (पूरी ग़ज़ल)

वो फख्र से जुदा हुए अनजान बन गए

प्यार का क़तल किया दीवान बन गए (1)

देते कभी थे इश्क़ में जन्मो के वास्ते

वो चार रोज़ में ही बेगान बन गए (2)

वादों की और इरादों की लम्बी कतार थी

फहरिस्त उन इरादों के अरमान बन गए (3)

अक्सर वफ़ा की कसमें जो खाते थे बार बार

कल तोड़ के कसम वो बेईमान बन गए (4)

महफ़िल कभी जिनके लिए हमने सजाई थी

आज उनकी महफ़िलों के महमान बन गए (5)

एहसास जिनकी कश्ती में महफूज़ था हमें

साहिल…

Continue

Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 12, 2020 at 10:18am — 12 Comments

ऐरावत

आज ऐरावत की मौत हुई तो कोप जताने आया हूँ

जन्म से पहले प्राण गए हैं रोष दिखाने आया हूँ

आया हूँ मैं ये प्रण लेकर संताप नहीं ये कम होगा

धोखे से मनु ने प्राण हरे जो लड़ने का न दम होगा

मानव कितना नीच जीव है कहता खुद को सबसे ऊपर

अ हिंसा का भाषण देकर हाथ उठाता मूक जीव पर

दम्भ तुझे किस बात का मानव तू क्यों इतना है इतराता

तेरे खेल की आग में जलकर झुलस गई गज की माता

कैद रहा है तीन माह से क्या…

Continue

Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 11, 2020 at 8:33pm — 2 Comments

प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए

मिलते वहीँ थे घाट पे करते थे गुफ़्तगू
तेरे बगैर घाट भी वीरान बन गए

उस पार रेत से जो हमने घर बनाए थे
वो प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए

अक्सर बिताईं शामें हमने विश्वनाथ में
अब पूजते हैं उनको वो भगवान् बन गए

चर्चे हमारे इश्क़ के गलियों में खूब थे
ख़बरों में थे कभी अभी गुमनाम बन गए

किस मोड़ पर ये इश्क़ हमको लेके आ गया
जलकर तुम्हारे प्यार में शमशान बन

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 10, 2020 at 11:23am — 7 Comments

कभी मनाते भी नहीं

ग़म के आंसू पी लेते हैं जताते भी नही

सताना सह लेते हैं वो सताते भी नहीं

रूठना आदत है उनकी कोई उनसे सीखे

गर हम रूठ जाएं तो कभी मनाते भी नहीं

इश्क़ में अश्क़ का नशा बहुत गहरा होता है

ज़ाम अश्क़ का हो तो अर्क मिलाते भी नहीं

मेरे दिल की बात तो अक्सर कह देता हूँ मैं

उनके भीतर का ज़लज़ला वो बताते भी नहीं

उनके नूर केे दीदार का इंतज़ार कब से है

साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी…

Continue

Added by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 8, 2020 at 10:19am — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service