दिवस के अवसान का,भ्रम नहीं पाले कोई,
चाॅद की आमद के पीछे,
आएगी ऊषा नई ,
ऊध्व॔मुख सूरजमुखी से होड़ लेना चाहती हूँ ..एक
गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।
अश्रुओं में बह गई है,
विगत की अंतिम निशानी,
पलकों पर सजने लगी है,
प्रीत की नूतन कहानी,जिंदगी की जीत पर ,
मन को ड़ुबोना चाहती हूँ ।
एक गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।
मैं सृजन के शब्द होकर,
दिग् दिगंत में उड़ सकूँ,
धूप का सा आचरण ले,
कालिमा से लड़ सकूँ,
राख से जन्मे विहग के,पंख होना चाहती हूँ ।
एक गहरी नींद ..
दद॔ झरते पात का,
जिसने किया अनुभूत है,
आत्मा की शुद्धता का ,
बस वही तो गीत है,
उस चिरंतन गीत का,
संगीत होना चाहती हूँ ।एक गहरी नींद सोना चाहती हूँ ।
अन्विता ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
मुहतरमा अन्विता जी आदाब,अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
मुहतरमा अन्विता जी आदाब,अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
वाह। सुश्री अन्विता जी, ग़ज़ब का चिन्तन और सृजन है। मन के तारों को झंकृत कर दिया आपकी रचना ने।
हृदय तल से बधाईयाँ स्वीकार करें।
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