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देना ख़ुशी अल्लाह सहूलत के मुताबिक(९८ )

(221 1221 1221 122 )

.

देना ख़ुशी अल्लाह सहूलत के मुताबिक
ग़म देना हमें सिर्फ़ ज़रूरत के मुताबिक
**
ये ध्यान रहे कोई न दीवाना कभी हो
अल्लाह न दे इश्क़ भी चाहत के मुताबिक
**
कर ले न गिरफ़्तार अना जीत से हमको
हर जीत का हो दाम हज़ीमत के मुताबिक
**
दुनिया में हर इक शय की है इक तयशुदा क़ीमत
बिकता नहीं क्यों आदमी क़ीमत के मुताबिक
**
करना है ख़ता रब तो हर इंसान की फ़ितरत
करना तू ख़ुदा माफ़ नदामत के मुताबिक
**
काहिलपने की आप चुकाएँगे ही क़ीमत
ग़फ़लत की सज़ा मिलती है ग़फ़लत के मुताबिक
**
रुसवाई मिले दोस्त गुनाहों की वज़ह से
ख़ुशनाम कोई होगा शराफ़त के मुताबिक
**
आसान सदा होगी रह-ए-ज़ीस्त हमारी
ढल जाएँ अगर ग़ैर की फ़ितरत के मुताबिक
**
सच बात 'तुरंत' आपको है कहनी अगर तो
दिल खोल कहें रोज़ की आदत के मुताबिक
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on May 9, 2020 at 3:09pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'करना है ख़ता रब तो हर इंसान की फ़ितरत
करना तू ख़ुदा माफ़ नदामत के मुताबिक'

इस शैर के ऊला मिसरे में वाक्य विन्यास ठीक नहीं,और सानी में सहीह शब्द "मुआफ़" है,देखियेगा ।

'रुसवाई मिले दोस्त गुनाहों की वज़ह से'

इस मिसरे में सहीह शब्द "वज्ह" 21 है,देखियेगा ।

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