तर्क यदि दे सको तो
बैठो हमारे सामने
व्यर्थ के उन्माद में , अब
पड़ने की इच्छा नहीं
यदि हमारी संस्कृति को
कह वृथा , ललकारोगे
ऐसे अज्ञानी मनुज से
लड़ने की इच्छा नहीं
सर्व ज्ञानी स्वयं को
औरों को समझें निम्नतर
जिनके हृद कलुषित , है उनको
सुनने की इच्छा नहीं
व्यर्थ के उन्माद में , अब
पड़ने की इच्छा नहीं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आप सभी की टिप्पणी द्वारा मुझे बहुत हौसला मिलता है।
बहुत आभार आपका
आद0 उषा अवस्थी जी सादर अभिवादन। आपकी उम्दा रचना पर कोटिश बधाई निवेदित है। सादर
हार्दिक धन्यवाद आपको
आ. उषा जी, बेहतरीन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
आपको रचना पसंद आई , मेरा प्रयास सार्थक हुआ।
हार्दिक आभार आपका
हार्दिक बधाई आदरणीय ऊषा अवस्थी जी। बेहतरीन रचना।
यदि हमारी संस्कृति को
कह वृथा , ललकारोगे
ऐसे अज्ञानी मनुज से
लड़ने की इच्छा नहीं
धन्यवाद अरुणेश कुमार जी
सुन्दर रचना के लिए बधाई हो।
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