सीख अनर्गल दे रहे , बढ़-चढ़ बारम्बार
हमको भी अधिकार है , करने का प्रतिकार
केवल जिभ्या चल रही , करें न कोई काज
नित्य करें अवमानना , सारी लज्जा त्याग
अस्थिरता फैला रहे , करते व्यर्थ प्रलाप
गिद्ध दृष्टि बस वोट पर , अन्य न कोई बात
जब है विश्व कराहता , बढ़े भयंकर रोग
केवल बस आलोचना , नहीं कोई सहयोग
शान्थि समर्थक को समझ पत्थर , रगड़ें आप
प्रकटेगी शिव रोष की अगनि , भयंकर ताप
उसमें सारा भस्म हो , मद होगा जब चूर
निश्चित तब हो पाएगी , सहज शान्ति भरपूर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आपका
आ. ऊषा जी, बहुत अच्छे सारगर्भित दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।
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