For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हवा ख़ामोश है वीरान हैं सड़कें
बहुत अब हो चुका बेकार मत भटकें

नहीं देंगे झुलसने आग से गुलसन
हमीं हैं फूल इसके रोज़ हम महकें

हमेशा ही रही तूफ़ान से यारी
घड़ी नाज़ुक अभी हम आज कुछ बहकें

हमें मंज़ूर है, हम शंख फूकेंगे
कि अब तो चश्म अपनों के नहीं छलकें

क़सम ले लें लड़ेंगे हम करोना से
मगर ऐसे कि अब दंगे नहीं भडकें

पुराना डर मुझे बेचैन करता जब
कभी उठतीं कभी गिरतीं तेरी पलकें

जमाखोरी बढ़ी मुश्किल हुआ जीना
कहो कैसे करोना में 'अमर' चहकें

*मौलिक व अप्रकाशित* 

Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 31, 2020 at 7:18pm

आदरणीय समर कबीर साहेब। आदाब।

ख़ुद को मैं ख़ुशकिस्मत समझ रहा हूँ, जानकर कि ग़ज़ल आप तक पहुँची मोहतरम। क़ाफ़िये को लेकर मैं ख़ुद बहुत संतुष्ट नहीं हूँ, मगर करोना के कहर के मद्देनज़र इसे कहने की कोशिश की है। शायद भविष्य में इसे ठीक कर सकूँ। दिल की गहराइयों से शुक्रिया।

Comment by Samar kabeer on March 31, 2020 at 3:41pm

जनाब 'अमर' पंकज जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,लेकिन पूरी ग़ज़ल में क़वाफ़ी ठीक नहीं हैं,देखियेगा,इस प्रस्तुति पर बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
8 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
yesterday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service