For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha)'s Blog (8)

आग कैसी जल रही है आजकल

ग़ज़ल:



आग कैसी जल रही है आजकल

क्या वबा ये पल रही है आजकल

हर ख़बर अब क़हर ही बरपा रही

पाँव बिन जो चल रही है आजकल

धैर्य का कब ख़त्म होगा इम्तिहाँ

हर चमक तो ढल रही है आजकल

हो रही है बेअसर हर घोषणा

योजना हर टल रही है आजकल

नफ़रतों की लहलहाती फ़स्ल ही

ज़ह्र बनकर फल रही है आजकल

हाल अपना मैं कभी कहता नहीं

ख़ामुशी पर खल रही है आजकल

फिर 'अमर' गहरा अँधेरा जायेगा

जोर…

Continue

Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on May 3, 2020 at 3:00pm — 3 Comments

ग़ज़ल: अमर नाथ झा

चाहते हो तुम मिटाना नफ़रतों का गर अँधेरा

हाथ में ले लो किताबें जल्द आएगा सवेरा

है जहालत का कुआँ गहरा बहुत मत डूबना तू

लोग हों खुशहाल गुरबत ख़त्म हो ये काम तेरा

ज़ह्र भी अमृत बने जो प्यार की ठंढी छुअन हो

नाचती नागिन है बेसुध जब सुनाता धुन सपेरा

गुफ़्तगू के चंद लमहों ने बदल दी ज़िंदगी अब

बन गया सूखा शजर फिर से परिन्दों का बसेरा

आग का मेरा बदन मैं आँख में सिमटा धुआँ हूँ

इश्क़ में अब बन गया सुख चैन का ख़ुद मैं…

Continue

Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on April 7, 2020 at 9:00pm — No Comments

ग़ज़ल

मुल्क़ है ख़ुशहाल बतलाती रही मुझको हँसी

नित नये किस्सों से भरमाती रही मुझको हँसी

गफ़लतों में झूमते थे छुप गया है सूर्य अब

बादलों की सोच पर आती रही मुझको हँसी

मौत आगे लोग पीछे, था सड़क पर क़ाफ़िला

क़ाफ़िले का अर्थ समझाती रही मुझको हँसी

देखकर मायूस बचपन और सहमी औरतें

चुप्पियाँ हर ओर शरमाती रही मुझको हँसी

गालियों के संग अब तो मिल रहीं हैं लाठियाँ

मौत सच या भूख उलझाती रही मुझको हँसी

अब करोना क़हर…

Continue

Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 31, 2020 at 8:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल

हवा ख़ामोश है वीरान हैं सड़कें

बहुत अब हो चुका बेकार मत भटकें

नहीं देंगे झुलसने आग से गुलसन

हमीं हैं फूल इसके रोज़ हम महकें

हमेशा ही रही तूफ़ान से यारी

घड़ी नाज़ुक अभी हम आज कुछ बहकें

हमें मंज़ूर है, हम शंख फूकेंगे

कि अब तो चश्म अपनों के नहीं छलकें

क़सम ले लें लड़ेंगे हम करोना से

मगर ऐसे कि अब दंगे नहीं भडकें

पुराना डर मुझे बेचैन करता जब

कभी उठतीं कभी गिरतीं तेरी…

Continue

Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on March 30, 2020 at 4:30pm — 2 Comments

तेरी मेरे कहीं कुछ कहानी तो है

ग़ज़ल:



तेरी मेरी कहीं कुछ कहानी भी है

प्यार में तैरती ज़िन्दगानी भी है

मत डरो देख तुम इस जमन की लहर

रासलीला तुम्हीं संग रचानी भी है

आँसुओं से नहाती रही उम्र-भर

तू ही चंपा मेरी रातरानी भी है

फूल जब मुस्कुराएँ तो समझा करो

इन बहारों में अपनी जवानी भी है

बाँध मत प्यार की बह रही है नदी

है रवाँ जिसमें उल्फ़त का पानी भी है

साथ देता हमेशा रहा…

Continue

Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on June 4, 2019 at 7:30pm — 3 Comments

सफर बाकी है अभी

सफर बाकी है अभी 

अभी बाकी है

जिंदगी से अभिसार

कह रहा हूं

तुम्हीं से

बार-बार

सुन रही हो न

ऐ मृत्यु के आगार।…

Continue

Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on June 4, 2019 at 7:22pm — No Comments

वादियाँ ख़ामोश ख़ामोशी भरा है ये सफ़र

वादियाँ ख़ामोश ख़ामोशी भरा है ये सफ़र

अब दरख़्तों से भी हम डरने लगे हैं किस क़दर

यूँ मचा कर शोर करते हैं परिंदे अहतिजाज

इस जगह पर ही हुआ करता था अपना एक घर'

जिस जगह हमने गुज़ारी थी महकती शाम, अब

ज़ह्र फैला उस जगह  तो कैसे हम रोकें असर

फूल भी बेनूर से क्यों दिख रहे हैं बाग में

ख़ूबसूरत से चमन कोतो खा गयी किसकी नज़र

वो पुराने दिन हमें जब याद आते हैं कभी

ढूँढने लगते हैं…

Continue

Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on May 28, 2019 at 1:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल:: सब ग़मों को भुला दिया जाए

सब ग़मों को भुला दिया जाए

थोड़ा सा मुस्कुरा दिया जाए

अश्क़ मैं पी चुका बहुत यारो
जामे उल्फ़त पिला दिया जाए

.

लो सियासत बदल गयी अब तो
हुक़्म उनका सुना दिया जाए

आँधियाँ तेज जब चलें, खुद को
अपने घर में बिठा दिया जाए

अब जलाकर 'अमर' बसेरा तुम
कह रहे ग़म भुला दिया जाए

"मौलिक और अप्रकाशित"  

Added by Amar Pankaj (Dr Amar Nath Jha) on May 27, 2019 at 6:00pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service