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(१)

मेरा दिल वो मेरी धड़कन,
उसपे कुरबां मेरा जीवन !

मेरी दौलत मेरी चाहत

ऐ सखी साजन ? न सखी भारत !

---------------------------------------

(२)

अंग अंग में मस्ती भर दे

आलिम को दीवाना कर दे

महका देता है वो तन मन 

ऐ सखी साजन ? न सखी यौवन  !

---------------------------------------

(३)

मिले न गर, दुनिया रुक जाए

मिले तो जियरा खूब जलाए ! 

हो कैसा भी - है अनमोल,

ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल !

-------------------------------------------

(४)
कर गुज़रे जो दिल में ठाने,
नर नारी उसके दीवाने !
वो इतिहास का सुंदर पन्ना 
ऐ सखी साजन ? न सखी अन्ना !
----------------------------------------

 (५)

हरिक बेचैनी का सबब है,
उसे किसी की चिंता कब है ?
दुनिया भर के दर्द है देता
ऐ सखी साजन ? न सखी नेता !

---------------------------------------

 

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 22, 2011 at 11:19am

सादर आभार आदरणीय तिलक राज कपूर जी ! 

Comment by Tilak Raj Kapoor on September 22, 2011 at 10:53am

विलुप्‍त होती जा रही साहित्यिक विधाओं को पुर्नजीवन देने का आपका यह प्रयास सम्‍माननीय है। मुकरियों में पेट्रोल्‍, अन्‍ना और नेता जैसे नये संदर्भ पहली बार देखने को मिले हैं।

ऐतिहासिक संदर्भों में यह बुद्धिमय संवाद के उदाहरण के रूप में ही दी जाती है। आचार्य सलिल जी ने इसकी सही व्‍याख्‍या की है।

आपसे आगे टप्‍पे, माहिये जेसी विधाओं पर भी अपेक्षा रहेंगी।

 

Comment by Vikram Srivastava on September 22, 2011 at 10:10am

इस उपयोगी एवं आवश्यक जानकारी के लिए  बहुत बहुत धन्यवाद प्रभाकर जी | जल्द ही अपनी कह मुकरी पोस्ट करूंगा और आप का मार्गदर्शन चाहूँगा ...इस शानदार विधा से परिचय कराने के लिए एक बार फिर से धन्यवाद ।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 22, 2011 at 9:33am

भाई विक्रम श्रीवास्तव जी, उत्साहवर्धन के लिए दिल से आभारी हूँ ! दरअसल कहमुकरी कहना कोई ज्यादा कठिन कम नहीं है, यदि आप भी इस विधा पर कलाम चलाएँ तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी ! कहमुकरी विधा शिल्प का संक्षिप्त जानकारी परिचय आपकी जानकारी के लिए दे रहा हूँ : 

 

''मुकरी=वह कविता जिसमें पहले कही हुई बात का अंत में खंडन सा किया जाए. पहेली जैसी कविता.''-(वृहद् हिंदी शब्द कोष, पृष्ठ ९००)
इस विधा को "मुकरी","कह-मुकरी", "कह-मुकरनी"  भी कहा जाता है ! यह दरअसल दो सखियों के बीच का वार्तालाप है ! बकौल आदरणीय तिलक राज कपूर जी के यह एक ऐसी "रिडल" है जिसका उत्तर इस में ही छुपा हुआ होता ! 

 

आदरणीय आचार्य संजीव सलिल जी के मतानुसार

:
"मुकरना एक क्रिया है जिसका अर्थ कही हुई बात से इंकार करना, नट जाना, फिर जाना, बदल जाना है. अपने सही कहा है की यह दो सखियों की गुफ्तगू (बात-चीत) है. बात करते-करते एक सखी को प्रिय की याद आ जाती है... वह बेखयाली में प्रिय के बारे में कुछ कह जाती है... दूसरी सखी पूछती है तो इनकार कर कहती है की नहीं मैं तो किसी अन्य के बारे में बात कर रही थी !" इस विधा में रचना के लिए वाग्वैदग्ध्य, प्रगल्भता तथा वाक्चातुर्य जरूरी हैं !

 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 22, 2011 at 9:33am

उत्साहवर्धन हेतु ह्रदय से आभार आदरणीया शन्नो जी !


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 22, 2011 at 9:32am

डॉ नमन दत्त जी, आपने इस लुप्तप्राय: विधा पर मेरा प्रयास पसंद किया, आपका अत्यंत आभार !

 

Comment by डॉ. नमन दत्त on September 22, 2011 at 6:07am

हज़रते अमीर ख़ुसरो की रवायत का सिलसिला आपने बख़ूबी निभाया प्रभाकर जी...और वो भी आज के इस जदीद नज़रिए के झरोखे से...मुबारक़बाद

Comment by Vikram Srivastava on September 21, 2011 at 7:57pm

वाह ....सच कहूँ तो आज ही कह मुकरियों से परिचय हुआ है....और आपकी कह मुकरियाँ पढ़कर इतना आनंद आ गया है की खुद भी कह के मुकरने का दिल कर रहा है....पाँच के पांचों कह मुकरियाँ बेजोड़ ...:)

Comment by Shanno Aggarwal on September 21, 2011 at 6:59pm

वाह ! बहुत ही सुंदर कहमुकरियाँ..पढ़कर मन आनंदित हो गया, योगराज जी. 

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