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निर्भया कौन ? (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी (45)

उन दोनों की भटकती आत्माओं की मुलाक़ात आज निर्भया की आत्मा से हो गई। उन की हरक़त पर कटाक्ष करते हुए वह बोली-

"कुछ भी हो, तुम दोनों को ख़ुदकुशी कतई नहीं करनी थी !"

"क्या करती ? पेट से थी ! कब तक छिपाती ? नाबालिग को तो कोई कसूरवार नहीं मानता ! मानता भी तो क्या मुझे इंसाफ़ मिलता ?" - एक ने कहा ।

दूसरी ने निर्भया की आत्मा को दुखी स्वर में बताया - "एक तरफ़ तो उस कुकर्मी नाबालिग के सामने देश के क़ानून भी उलझन में पड़ गये ! दूसरी तरफ़ तुम्हारी निर्मम हत्या के बाद वैसे ही गैंग-रेप होते ही रहे न ! किस ने क्या कर लिया ? मेरे वजूद की निर्मम हत्या बाहर वाले करते या मेरे घरवाले, सो मैंने ख़ुद ही अपनी हत्या कर ली ! "

निर्भया नि:शब्द होकर दोनों को अपने साथ लेकर सुप्रीम कोर्ट के अंदर-बाहर के नज़ारे और राजनीति से प्रेरित प्रदर्शनों में परेशान हाल अपने परिवारजन को देखने लगी।

"कुछ सुना निर्भया तुमने ! नाबालिग कहलाने की उमर घटाकर सौलह साल करने पर भी चर्चा हो रही है !"

निर्भया ने ठहाका लगाते हुए कहा- "ये भी ख़ूब रही ! दुष्कर्म रुक जाएँगे क्या ? मूल समस्या तो कुछ और ही है न ! लड़की कब और कैसे बनेगी 'निर्भया' ? पुरुष तो पुरुष ही रहेगा न !"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 6:19am
इस रचना पटल पर समय देने हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 24, 2015 at 7:45am
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी ।

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Comment by rajesh kumari on December 23, 2015 at 7:04pm

आपने इस लघु कथा के माध्यम से आज के हर  संवेदनशील मन की बात लिख दी समस्या की जड़  तो कहीं और है उसे सही करना होगा |

आपको दिल से बधाई इस बेहतरीन रचना के लिए आ० उस्मानी जी .

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 23, 2015 at 1:17am
मेरी ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर रचना के मर्म को समझते हुए सराहना करने व मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया नीता कसार जी ।
Comment by Nita Kasar on December 22, 2015 at 8:41pm
आज की जवंलंत समस्या पर लेखनी उठाई है आपने कुछ तो सुकून मिला होगा उस मासूम को जब आज जुवेनाईल जस्टिस बिल क़ानून बनने की दिशा में आगे बढ़ा है ।कुछ लोगों की छोटी सोच से कब मुक्त होगा हमारा समाज आज की व्यवस्था पर कड़ा प्रहार करती कथा के लिये आपको बधाई आद०शहजाद भाई ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 22, 2015 at 1:07pm
त्वरित प्रतिक्रियाओं से ब्लोग पोस्ट की सार्थकता बढ़ाने व मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी व आदरणीया राहिला जी।
Comment by Rahila on December 22, 2015 at 12:55pm
बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण घटना के मर्म को समझ आप ने खूब मुद्दा उठाया । काश न्याय मिल पाता । सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 22, 2015 at 11:29am

आ० भाई शेख शहज़ाद जी .इस झहिझोड़ती लागूकथा के लिए कोटि कोटि बधाई . काश ! स्त्री की जगह पुरुष अपनी सोच बदल पाता ....

Comment by pratibha pande on December 22, 2015 at 11:14am

बहुत ही नाज़ुक मसले पर आपने कलम उठाई है ,  अंधे क़ानून पे क्या कहें ,  सच में समस्या की जड़ कहीं और है , नाज़ुक विषय पर कसे शिल्प के साथ लिखी कथा पर पर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय उस्मानी जी 

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