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"नज़रिया" - [लघु कथा - 16]

"नज़रिया" - (लघु कथा)

एक दिन बेडरूम में काली चीटियों के झुंड को देखकर शीनू ने अपने पिता जी से कहा-" पापा, दीवार पर ये इतनी सारी चीटियां लाइन बनाकर कहां जा रही हैं, उनके तो मुँह में भी कुछ है !"

"बेटा, वे अपने भोजन का इन्तज़ाम कर रही हैं, लगता है कुछ 'जुगाड़' हो गया है।"

"जुगाड़ ! जुगाड़ में इतनी सारी चीटियां इकट्ठा ! जैसे कि कोई 'दावत' या 'भोज' हो रहा हो !"

"हाँ बेटा, ये चीटियां मिल जुलकर अनुशासन में खाना शेयर करती हैं। देखो, पूरा परिवार ही नहीं, पूरा ख़ानदान इकट्ठा हो गया है यहाँ।"

"नहीं पापा, इस 'रिसेप्शन' में कुछ परिचितों के साथ कुछ 'बिन बुलाए मेहमान ' भी तो होंगे !"

"हाँ ,वो देखो, एक कीड़े की 'लाश' ! ,"

"पापा, इस कीड़े की 'हत्या' की गई है, या फिर ये कोई 'सुसाइड' का केस है ? "

" नहीं बेटा, इसे किसी और ने मारा होगा, या कोई 'दुर्घटना' हो गई होगी !"

"छोड़ो पापा, सरकार 'जांच समिति' बिठा देगी या सीबीआई से जांच करा लेगी ! अपन तो ये देखो कि कैसे पूरा का पूरा ख़ानदान लूटने खाने को भिड़ा हुआ है। कहीं ये काली चीटियां 'आइ.एस.आइ.एस.' की तरह काम तो नहीं करतीं ?"

"बहुत हो गया बेटा, अब सो जाओ।"

" अच्छा पापा, ये तो बताओ कि इस कीड़े का यह ' देहदान' हो रहा है या 'अंगदान' !"

" नहीं बेटा, कीड़ा तो बेचारा मर गया था, ये तो चीटियों की 'दावत' चल रही है !"

"पापा, नेताओं, एक्टरों जैसी या 'भण्डारा' या फिर ' रोज़ा-अफ्तार' जैसी ?"

"नहीं, मुझे तो ये 'सेना' के अनुशासन जैसी 'सेल्फ़- सर्विस' जैसा कुछ लगता है ! तुम खुद देख लो , कितनी अनुशासित हैं वे चीटियां !" -इतना कहने के बाद पिताजी कुछ बोलने ही वाले थे कि शीनू बोल पड़ा- " अगर चीटियां इतनी अनुशासित हो सकती हैं तो हम और हमारे देश के नेता क्यों नहीं ?"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 14, 2015 at 1:29pm
हौसला अफज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय डॉ. कंवर करतार जी।
Comment by कंवर करतार on October 13, 2015 at 9:32pm

शेख उस्मानी भाई ,अति खूबसूरत  रचना के लिए बधाई I

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 6:00pm
शुक्रिया हौसला अफज़ाई हेतु आदरणीय Tej Veer Singh जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on October 13, 2015 at 1:26pm

बधाई शेख उस्मानी जी!बेहद खूबसूरत लघुकथा!

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