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"मिथ्या अतिविश्वास" -- [लघु कथा -12]

"मिथ्या अतिविश्वास" - (लघु कथा)

"आप लोग मुझ पर क्यों बरस रहे हैं ? आपसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा हूँ।अख़बार और क़िताबें ही नहीं पढ़ता, इन्टरनेट तक खंगाल डालता हूँ !"

रूपेश के ये शब्द सुनकर पड़ोसी शर्मा जी ने उसे समझाया- " अच्छी बात है, लेकिन जो तुमने किया, उसे सही नहीं कह सकते। क्या ज़रूरत थी अपने मन से दवाओं में कटौती करने की और दवायें खुद ही बदलने की ? आखिर तुमने अपने पिताश्री को इतनी कम उम्र में इतनी सीरियस कन्डीशन में पहुंचा ही दिया न ! साइड इफेक्ट्स के बारे में अपने डॉक्टर से बात तो करते ! इन्टरनेट पर तो जाने क्या-क्या दिया रहता है ?"

"अंकल, अब आप भाषण तो मत दो यहाँ पर, हमारा मामला है, हम निपट लेंगे। डॉक्टर्स तक मानते हैं मेरी नोलेज को, एक तो मुझे "डॉक्टर" ही समझता है ! क्या ज़रूरत है मुझे उनके यहाँ बार-बार चक्कर लगाने की ? सालों ने तो बिजनेस बना रखा है ! "

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 7, 2017 at 10:39pm
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देकर विचार साझा करने व हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह जी, आदरणीय सतविंदर कुमार जी व आदरणीय सुशील सरना जी।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 7, 2015 at 8:44pm
समसामयिक विषय को उठाती अद्भुत लघुकथा।हार्दिक बधाई आदरणीय
Comment by Sushil Sarna on October 6, 2015 at 6:51pm

जिस का काम उसी को साजे का सन्देश देती इस संदेशपरक लघु कथा पर हार्दिक बधाई आदरणीय। 

Comment by TEJ VEER SINGH on October 6, 2015 at 4:57pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानीजी! बहुत सम सामयिक लघुकथा!आजकल यह बहुत होरहा है!

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