For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८८

2212 1212 2212 12

रुक्का किसी का जेब में मेरी जो पा लिया
उसने तो सर पे अपने सारा घर उठा लिया //१

लगने लगा है आजकल वीराँ ये शह्र-ए-दिल
नज्ज़ारा मेरी आँख से किसने चुरा लिया //२

ममनून हूँ ऐ मयकशी, अय्यामे सोग में
दिल को शिकस्ता होने से तूने बचा लिया //३

सरमा ए तल्खे हिज्र में सहने के वास्ते
दिल में बहुत थी माइयत, रोकर सुखा लिया //४

खाता था मुझसे प्यार की क़समें वो रात दिन
मैंने भी उसकी बात रक्खी, आज़मा लिया //५

गिरकर ज़मीने ख़ुल्द से पैदा हुआ जो मैं
अपनी अना में ख़ुद को ही मैंने गिरा लिया //६

बेचैन था वो गुलबदन बाजू में लेटकर
बांहों में उसको हौले से मैंने सुला लिया //७

मुतलाशी कब था हुस्न के अफ़्सूँ का 'राज़' मैं
बुलबुल मिली जो बाग़ में तो दिल लगा लिया //८

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

रुक्का- ख़त, चिट्ठी, पुर्जा; ममनून- आभारी; अय्यामे सोग- शोक भरे दिन; सरमा ए तल्खे हिज्र - वियोग की कड़कती ठण्ड की रुत; माइयत- नमी; ज़मीने ख़ुल्द- स्वर्ग की ज़मीन; मुतलाशी- तलाश करने वाला

Views: 992

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Md. Anis arman on December 29, 2018 at 11:21am

राज साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिये | वैसे इस बार के  मुशायरे में अभी तक आपकी ग़ज़ल पढ़ने को नहीं मिली है l

Comment by राज़ नवादवी on December 28, 2018 at 4:06pm

आदरणीय फूल सिंह साहब, आदाब, ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by PHOOL SINGH on December 28, 2018 at 2:23pm

भाई "राज नवादवी" एक अच्छी और सूंदर रचना बधाई स्वीकारे

Comment by Samar kabeer on December 28, 2018 at 12:04pm

मुहावरा 'घर सर पर उठाना है' बाक़ी आप देख लें,नस्र का हवाला ग़ज़ल में नहीं चलता,किसी ग़ज़ल में 'घर माथे पर उठाना' हो तो बताइये ।

तनाफ़ुर बदलना मुमकिन हो तो ठीक अन्यथा रखा जा सकता है ।

Comment by राज़ नवादवी on December 28, 2018 at 9:28am

मक़्ते के सानी मिसरे में तनाफ़ुर निकलना मुमकिन नहीं, मिसरा बदलना होगा 

------------------------------------------------------------------------------------

मुतलाशी कब था हुस्न के अफ़्सूँ का 'राज़' मैं 
बुलबुल मिली जो बाग़ में तो दिल लगा लिया //८ 

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. आपकी इस्लाह का बहुत बहुत शुक्रिया. मगर मेरा नम्र निवेदन है कि जब मिसरे में तनाफ़ुर निकलना मुमकिन नहीं हो, तब उसको रखने की इजाज़त हो. ऐसा हम कई उदाहरणों में पाते हैं. अब 'दिल लगाने' को, जो शायरों के लिए बड़ी आम सी बात है, किसी और पदावलि से कैसे बदला जा सकता है? 

सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on December 28, 2018 at 9:02am

'माथे पे उसने अपने सारा घर उठा लिया'

---------------------------------------------

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. आपकी इस्लाह का बहुत बहुत शुक्रिया. मगर मेरा नम्र निवेदन है कि बिहार एवं अन्य पूर्वांचल राज्यों की हिंदी में माथा शब्द का अर्थ सर भी है, माथे में दर्द हो रहा है, माथा पिरा रहा है, माथे पे सारे घर का बोझ है, माथा ठनक गया, इत्यादि. कृपया देखें: 

https://hi.wiktionary.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A5%E0%A4%BE

और यह भी कि माथे पे घर उठाने का अर्थ सचमुच में अपने शिराग्र पे किसी चीज़ को धारण कर लेना नहीं है बल्कि अपने व्यवहार से यह प्रदर्शित करना है कि अपने मन-मस्तिष्क पे उसका बोझ ले लिया गया है. 

कृपया हिंदी व्यंगकार श्री कन्हैया लाल नंदन जी का अपनी पुस्तक "श्रेष्ठ व्यंग कथाएँ" में यह प्रयोग देखें: "परेशान-परेशान आज घर लौटा तो पत्नी दर्द से कराह रही थी. सारा घर उसने माथे पे उठा रखा था."

सादर 

Comment by Samar kabeer on December 27, 2018 at 9:07pm

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'माथे पे उसने अपने सारा घर उठा लिया'

इस मिसरे पर जनाब लक्ष्मण धामी जी से सहमत हूँ,क्योंकि "माथा" शब्द का अर्थ है 'पेशानी','जबीं', और मुहावरा है 'घर सर पर उठाना' उम्मीद है आप समझ गए होंगे ।

मक़्ते के सानी मिसरे में तनाफ़ुर निकलना मुमकिन नहीं,मिसरा बदलना होगा ।

Comment by राज़ नवादवी on December 27, 2018 at 2:58pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. हमारी  अपनी बोलचाल की भाषा में हम 'माथे पे घर उठाना' बोलते हैं, इसलिए ये मिसरा लिया. बाक़ी जनाब समर कबीर साहब की इस्लाह से बात स्पष्ट होगी. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on December 27, 2018 at 2:55pm

आदरणीय समर कबीर साहब, मुझे मालूम है कि इस ग़ज़ल के मक़ते में ऐब-ए-तनाफ़ुर है-

मुतलाशी कब था हुस्न के अफ़्सूँ का 'राज़' मैं 
बुलबुल मिली जो बाग़ में तो दिल लगा लिया //८ 

मगर मैं बिना शेर बदले इसे किसी तरह दूर नहीं कर पाया, आपकी इस्लाह का इंतज़ार रहेगा. सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2018 at 7:27pm

आ. भाई राजनवादवी जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई । लेकिन पहले शेर का दूसरा मिसरा उचित प्रतीत नहीं हो रहा । सर पर उठाना और माथे लगाना " के परिप्रेक्ष में सोचकर देखियेगा । शेष विद्वजन इस पर राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"गजल (विषय- पर्यावरण) 2122/ 2122/212 ******* धूप से नित  है  झुलसती जिंदगी नीर को इत उत…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सादर अभिवादन।"
5 hours ago
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Jun 7

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Jun 6
Sushil Sarna posted blog posts
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service