For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"तरही ग़ज़ल नम्बर 4

नोट:-

तरही मुशायरा अंक-100 में 87 ग़ज़लें पोस्ट हुईं,मेरी इस ग़ज़ल में जो क़वाफ़ी इस्तेमाल हुए हैं वो बिल्कुल नये हैं ।

पहले सिल पर घिसा गया है मुझे

फिर जबीं पर मला गया है मुझे

जाल हूँ इक सियासी लीडर का

नफ़रतों से बुना गया है मुझे

कोई बारूद की तरह देखो

सरहदों पर बिछा गया है मुझे

कहदो तक़दीर से बखेरे नहीं

करके वो एक जा गया है मुझे

क़त्ल करने के बाद ख़्वाबों का

देके वो ख़ूँबहा गया है मुझे

हक़ किसी और का नहीं उस पर

दिल वो करके हिबा गया है मुझे

दर्द बढ़ता ही जा रहा है,"समर"

कैसी देकर दवा गया है मुझे

"समर कबीर"

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1427

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by santosh khirwadkar on October 24, 2018 at 11:14pm

आदरनीय श्री समर साहब प्रणाम !!! वाक़ई नवीन और बेहतरीन क़वाफ़ी के परिवेश में सज्जित इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत -बहुत बधाई /अभिनंदन !!!!

Comment by Mohammed Arif on October 24, 2018 at 10:53pm

कोई बारूद की तरह देखो

सरहदों पर बिछा गया है मुझे  वाह! वाह !! बहुत ख़ूब ! ग़ज़ब की देशभक्ति ।

                      शे'र दर शे'र दिली दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल करें आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।

Comment by mirza javed baig on October 24, 2018 at 10:47pm

आली जनाब समर कबीर साहिब आदाब, 

पहली, फिर दूसरी तीसरी, और अब ये चौथी ग़ज़ल सभी एक से बढ़ कर एक हैं 

चारों ग़ज़लों के पुरख़ुलूस दाद और मुबारक बाद पैश करता हूं 

आप हमैशा ही कुछ अलग कुछ ख़ास करने पर विश्वास रखते हैं जहाँ पहली ग़ज़ल में ओबीओ मंच को अपने मिसरे के पहले शब्दों में उकेरा वहीं इस ग़ज़ल में पूरे मुशायरे में इस्तेमाल ना किए गए काफ़ियों को लाने की भरपूर कोशिश का मुज़ाहिरा करते हुए कमाल की ग़ज़ल कही बहुत बहुत मुबारक बाद 

वेसे काफ़िया कोई भी हो जब आप जेसे ग़ज़ल के माहेरीन उसे इस्तेमाल करते हैं तो उन क़वाफ़ियों की अज़मत बुलंद हो जाती है 

इस बहतरीन ग़ज़ल के लिए एक बार फिर दिली मुबारक बाद 

Comment by anjali gupta on October 24, 2018 at 10:31pm
वाआआह आदरणीय समर कबीर sir , मुझे लगा था एक ही ज़मीन पर 3 ग़ज़लें कहना कितना मुश्किल होगा लेकिन आपने तो उन सबसे भी आगे एक और ग़ज़ल तमाम नए काफ़ियों के साथ कह दी। बहुत ही ख़ूब
Comment by Samar kabeer on October 24, 2018 at 8:04pm

जनाब अफ़रोज़ साहिब,शुक्रिया ! याद  दिलाने का शुक्रिया ।

Comment by Afroz 'sahr' on October 24, 2018 at 7:54pm

जनाब इस ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद आपको,

मतले में इस्तेमाल क़ाफ़िया "मला" मोरी ग़ज़ल "३" के मतले में मैंने इस्तेमाल किया है,,

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2018 at 7:17pm

आ. भाई समर जी, यह गजल तो कमाल की हुई है । शेर किस प्रकार गढ़े जाते हैं, उस सोच को पनपान के लिए मुझ जैसे तमाम सीखने वालों के लिए बेतरीन सबक भी है यह गजल । इसके लिए कोटि कोटि बधाई और धन्यवाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service