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ग़ज़ल (हो गई उनकी महरबानी है)

(फाइलातुन _मफाइलुन_फेलुन)

कोई मुश्किल ज़रूर आनी है |
हो गई उनकी महरबानी है |

तिशनगी जो बुझाए लोगों की
तुझ में सागर कहाँ वो पानी है |

और मुझ से वो हो गए बद ज़न
बात यारों की जब से मानी है |

खा गई घर का चैन मँहगाई
उनकी जिस दिन से हुक्म रानी है |

ज़ख्म तू ने दिए हैं ले कर दिल 

जुल की फितरत तेरी पुरानी है |

इंक़लाब आए क्यूँ न बस्ती में
उन पे आई गज़ब जवानी है |

तरके उल्फत करें वही तस्दीक 

मुझको तो दोस्ती निभानी है |

(मौलिक व अप्रकाशित ) 

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Comment by gumnaam pithoragarhi on June 19, 2018 at 9:20pm

जानेमन-----बेईमान-----मात्रा गिराना कुछ शंका है।। सुधिजन कुछ कहें ,,,,,,

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 19, 2018 at 7:15pm

जनाब गुमनाम साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया | जानेमन पूरा एक शब्द है जिसका मतलब महबूब होता है और बे ईमानी में एक मात्रा गिरा कर बे इमानी किया गया है |शायद शंका समाधान हो गया होगा |

Comment by gumnaam pithoragarhi on June 19, 2018 at 6:41pm

वाह खूब गज़ल हुई है ,,, एक बात पर शंका है समाधान करें, जानेमन और बेईमानी को क्या जाने मन ,,,,, बे इमानी ,,, लिखा जा सकता है । सुधि जान भी शंका समाधान करें।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 19, 2018 at 1:57pm

मुहतरम जनाब तेज वीर साहिब  , ग़ज़ल पर आपकी सुंदर प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on June 19, 2018 at 1:56pm

मुहतरम जनाब आरिफ साहिब आ दाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by TEJ VEER SINGH on June 19, 2018 at 1:22pm

हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।लाज़वाब गज़ल।

खा गई घर का चैन मँहगाई 
उनकी जिस दिन से हुक्म रानी है |

Comment by Mohammed Arif on June 19, 2018 at 12:39pm

आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी आदाब,

                    शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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