For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चरित्र - लघुकथा –

चरित्र - लघुकथा –

 "वर्मा साहब, अपना सामान समेट लीजिये। आज और अभी आपको वृद्धाश्रम में जाना है”।

इतना कह कर वह युवक गुस्से में तेजी से निकल गया।

वर्मा जी का मस्तिष्क संज्ञा शून्य हो गया। वह सोचने पर विवश होगये कि आज उनका इकलौता पुत्र किस तरह व्यवहार कर रहा है।

कमिशनर जैसे बड़े पद से सेवा निवृत हुये करीब बारह साल हो गये। इस बीच पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया।

"आपने अभी तक पैकिंग नहीं की"? वही युवक पुनः बड़बड़ाते हुये आया|

"अचानक यह फ़ैसला, वह भी बिना मेरी रॉय जाने"?

"मि० वर्मा, आप एक परिवार के साथ रहने की विश्वसनीयता और भरोसा खो चुके हैं"।

"तुम शायद भूल रहे हो कि मैं तुम्हारा पिता हूँ"।

"मुझे याद है, इसीलिये आपको वृद्धाश्रम भेज रहा हूँ, अन्यथा अब तक आपको पुलिस को सोंप देता"।

"यह तुम क्या कह रहे हो राजीव बेटा"?

"मेरी पत्नी संगीता ने आरोप लगाया है कि जब मैं दौरे पर था आपने उसके साथ जबरदस्ती करने की चेष्टा की"?

"राजीव, यह झूठ है"?

" मुझे आपसे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिये क्योंकि ऐसे आरोप आप पर नौकरी में भी लगे थे"।

"बेटा, आज तेरी माँ जीवित होती तो बता देती कि उन आरोपों में कितनी सच्चाई थी"?

"मुझे सब पता है , वह आरोप किसी यूनियन लीडर ने लगवाये थे। मगर यह मामला तो घर की बहू का है"।

वर्मा जी उस दिन को याद कर सोच में पड़ गये जब उन्होंने राजीव के प्रेम विवाह पर असहमति जताई थी।

 उनको संगीता के घर का माहौल संस्कार विहीन लगा था। उसके पीछे उनके तर्क भी उचित थे।

क्योंकि शादी की किसी भी रस्म में संगीता के पिता ने सक्रियता से भाग नहीं लिया, उनकी जगह उनकी पत्नी का कोई  मिलनेवाला ही सब कुछ कर रहा था।

लेकिन बेटे की खुशी और ज़िद के लिये उन्होंने यह रिश्ता क़बूल कर लिया था।

 संगीता उन्हें कभी पसंद नहीं आयी क्योंकि उसका आचरण उनके प्रति भेदभाव पूर्ण रहता था।

उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद तो संगीता ने उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से चेतावनी दे दी थी कि अपना और कहीं ठिकाना ढूंढ लो वरना फिर कहीं भी रहने लायक नहीं रहोगे।

लेकिन उनको अपने बेटे पर भरोसा था इसलिये वहीं बने रहे।

हालांकि यह कोठी  उनकी ही थी । चाहते तो वे बेटे बहू को ही जाने के लिये कह सकते थे। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया| क्योंकि उन्हें बेटे से असीमित प्रेम था।

इसी बीच राजीव फिर से फुफकारता हुआ पिता के कमरे में आया। इधर उधर नज़र दौड़ाई।

मि० वर्मा नहीं दिखे।

उनकी मेज पर एक पत्र रखा था।

"राजीव, मैं जा रहा हूं। सदैव के लिये| जब किसी रिश्ते में अविश्वास की दीवार बन जाती है तो एक घर क्या एक शहर में भी रहना मुनासिब नहीं होता। एक पिता की हैसियत से एक मशविरा है, भविष्य में किसी गंभीर मुद्दे पर निर्णय लेना हो तो दिल से नहीं दिमाग से लेना। दिल से लिये निर्णय गलत हो सकते हैं लेकिन दिमाग से नहीं। विश्वास और अंध विश्वास में यही फ़र्क होता है”|

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2018 at 6:43pm

आदरणीय तेजवीर जी बहुत बढया सन्देश दिया है आपने इस रचना के माध्यम से हार्दिक बधाई आपको

Comment by Shyam Narain Verma on May 5, 2018 at 11:26am
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
4 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service