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२२ २२ २२ २२ २२ २२  

दिल की बातें वो भी समझें ये  सोचा था 

होंगी मिलकर सारी बातें ये  सोचा था ?

चले जायेंगे अपने रस्ते वो भी इक दिन 

रह जाएंगी तन्हा रातें ये   सोचा था ?

जीवन जैसा होगा उसको जी लेना है 

दर्दो अलम की ले सौगातें ये सोचा था ?

एक बहाना मुझको जीने का मिल जाता 

रह जातीं बस उनकी यादें ये सोचा था ?

डूब गयीं हूँ प्यार में जिनके मैं " रौनक" जी 

इक दिन मुझको वो भूलेंगे ये सोचा था ? 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2017 at 11:28am

आदरणीया कल्पना जी , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ । आ. समर भाई जी की बातों का संज्ञान कीजियेगा ।

Comment by vijay nikore on September 27, 2017 at 5:49am

गज़ल अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई, आदरणीया कल्पना जी।

Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 12:01am
वाह वाह आदरणीया कल्पना जी बहुत ही सुंदर लयबद्ध ग़ज़ल हुई है। हृदय से बधाई स्वीकारें।सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 26, 2017 at 10:47pm
अच्छी कोशिश हुई है आदरणीया..सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 7:11pm

हार्दिक बधाई आदरणीय कल्पना भट्ट जी।बेहतरीन गज़ल।पहली बार आपकी गज़ल पढ़ी।अच्छा प्रयास।

Comment by Mohammed Arif on September 26, 2017 at 5:29pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, बढ़िया ग़ज़ल । अच्छे अशआर । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 26, 2017 at 4:16pm

आदाब आदरणीय समर भाई जी | जी भाई जी अभी सही करती हूँ , सादर धन्यवाद आपका , आप बहुत अच्छे से सिखाते हैं हम जैसे नवोदितों को , साधुवाद आपको | सादर प्रणाम |

Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 3:48pm
बहना कल्पना भट्ट'रौनक़'जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
ये ग़ज़ल आपने 22 22 22 22 22 2 पर लिखी है जबकि ये 22 22 22 22 22 22 पर हो गई है,ग़ज़ल के अरकान ऊपर बदल दें ।
'चले जायेंगे अपने रास्ते वो भी इक दिन'
इस मिसरे में 'रास्ते' को "रस्ते" कर लें ।
चौथे शैर के सानी मिसरे में 'जाती' को "जातीं" कर लें ।

'डूब गई हूँ प्यार में जिनके मैं "रौनक़"
इस मिसरे में एक रुक्न कम हो रहा है,इस मिसरे को यूँ कर लें:-
"डूब गई हूँ प्यार में जिनके मैं "रौनक़"जी"

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