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ग़ज़ल - कह दिये , हर वास्ता जाता रहा ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122       212  

दिल से जब नाम-ए ख़ुदा जाता रहा

दरमियानी मो’जिजा जाता रहा

 

ख़ुद पे आयीं मुश्किलें तो, शेख जी

क्यूँ भला हर फल्सफ़ा जाता रहा

 

जो इधर थे हो गये जब से उधर

कह दिये , हर वास्ता जाता रहा

 

अब ख़बर में वाक़िया कुछ और है

था जो कल का हादसा जाता रहा

 

गर हुजूम –ए शहर का है साथ , तो  

जो किया तुमने बुरा जाता रहा

 

आँखों में पट्टी, तराजू हाथ में

जब दिखे, तो हौसला जाता रहा

 

कह ज़दीद, अब का ज़माना और है

वक़्त कल का इश्क़िया, जाता रहा

*********************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

मो' जिजा = चमत्कार , फल्सफा = दर्शन ( शास्त्र ) , ज़दीद = आधुनिक

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2017 at 7:41pm

आदरणीय समर भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिये हृदय से आभारी हूँ ।

मो'जिज़ा का अर्थ इतनी बारीकी से मंच पर रखने और समझाने के लिये आपका हृदय से आभार ।

सानी मिसरा मै ज़रूर बदल लूँगा -  आपका पुनः आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2017 at 7:36pm

आदरणीय सुशील भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2017 at 7:35pm

आदरणीय आशुतोष भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2017 at 7:34pm

आदरनीय मिथिलेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2017 at 7:34pm

आदरणीय सिरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 26, 2017 at 7:33pm

आदरणीया राजेश जी , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 26, 2017 at 6:48am
आदरणीय समर साहब आपने मंच पर इतनी उम्दा जानकारी साझा की, इसके लिए मंच और हम सदैव आपके आभारी रहेंगे।
Comment by Naveen Mani Tripathi on January 26, 2017 at 12:49am
बहुत उम्दा सर
Comment by Samar kabeer on January 25, 2017 at 11:08pm
दोस्तो आदाब,
जनाब गिरिराज भंडारी जी को इंटरनेट की समस्या ने बांध रखा है,इसलिये वो फिल्हाल मंच पर नहीं आ सकते,इस कारण उन्होंने मेरी नीचे दी गई टिप्पणी पर अभी अभी मुझसे फोन पर चर्चा की,और "मो'जिज़ा"यानी "चमत्कार"के विषय पर कुछ बातें हुईं,जो मैं यहाँ साझा करने की अनुमति उन से ले चुका हूँ ।
गिरिराज भाई के भाव इस मतले में ये हैं कि भक्त और भगवान के बीच ऐसा रिश्ता हो गया कि जब ख़ुदा का नाम दिल से जाता रहा इसलिये चमत्कार मौजिज़ा नहीं होता,मिसाल के तौर पर उन्होंने मुझे उन पर बीते हुए दो क़िस्से सुनाए पहले में अगर एक सेकण्ड की भी देर होती तो बड़ा हादसा हो जाता,दूसरे में वो अपनी धर्मपत्नि से जो शब्द कह कर घर से निकले थे,वही शब्द एक बुज़ुर्ग ने उन्हें वैसे के वैसे सुना दिये, इन दोनों बातों को वो मौजिज़ा या चमत्कार बता रहे थे,चर्चा के दौरान उन्होंने मौजिज़ा शब्द पर "क़तील शिफ़ाई का एक मतला पेश किया:-
"ये मौजिज़ा भी मुहब्बत कभी दिखाये मुझे
कि संग उसपे गिरे और ज़ख़्म आये मुझे"
मैंने जो बातें साझा की हैं वो आप भी ध्यान दीजिए ।
अस्ल में कभी कभी हम ज्ञान को या नसीब को चमत्कार समझ लेते हैं,जैसा कि उन्होंने समझा हादसे में बच जाने को वो चमत्कार समझ रहे थे,और बुज़ुर्ग के ज्ञान को भी ।
जबकि "मौजिज़ा"या "चमत्कार"उसे कहते हैं जो मुमकिन नहीं और हो जाये,जैसे रामायण में हनुमान जी का हवा में उड़ना,इस्लाम में चाँद का दो टुकड़े हो जाना,इधर मुहब्बत में आप लैला मजनूँ के क़िस्से में मौलवी बेंत मजनूँ के हाथ पर मरता था और निशान लैला की हथेली पर आ जाते थे,इस कहते हैं मौजिज़ा,वैध या हकीम हमारी नब्ज़(नाड़ी) देख कर सब खाया पिया बता दे तो वो उसका ज्ञान है चमत्कार नहीं,एक ज्योतिषि या नजूमी हमें हाथ की लकीरों या सितारों की चाल देख कर मन की या भविष्य या भूतकाल की बात बता दे तो ये ज्ञान है चमत्कार या मौजिज़ा नहीं ।
क़तील ने अपने शैर में उसी मौजिज़े की तमन्ना की है जो लैला मजनूँ के साथ हुआ था । और ऐसे चमत्कार हर किसी के लिये नहीं होते ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 25, 2017 at 7:30pm
वाह आदरणीय बहुत उम्दा ग़ज़ल..कुछ शब्द सीखने को मिले...

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