For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है - ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   2 ( बहरे मीर )

किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है

***********************************

सबके अंदर एक सिकंदर ज़िन्दा है

इसीलिये हर ओर बवंडर ज़िन्दा है  

 

सब शर्मिन्दा होंगे, जब ये जानेंगे

अभी जानवर सबके अंदर ज़िन्दा है

 

मरा मरा सा बगुला है बे होशी में

लेकिन अभी दिमाग़ी बन्दर ज़िन्दा है

 

फूलों वाला हाथ दिखा असमंजस में

किसी हाथ में अब तक खंज़र ज़िन्दा है

 

परख नली की बातों में कुछ घृणा दिखी

देख, अभी तक जंतर मंतर ज़िंदा है

 

अगर सुदामा कहीं दिखे, तो मानो तुम

दिखा नहीं है, लेकिन गिरधर ज़िंदा है

 

चक्र व्यूह रचने वाले ये याद रखें

अर्जुन जैसा एक धनुर्धर ज़िंदा है

 

क़दम ताल ही किये अभी तक, चले कहाँ  

अभी वहीं है दूरी, अंतर ज़िन्दा है.

 

ज़रा ज़रा विष सब कंठों मे रखते हैं

सब में थोड़ा थोड़ा शंकर ज़िन्दा है

************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित    -- संशोधित

Views: 740

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 16, 2017 at 5:25pm

आदरणीय सौरभ भाई , इस शेर की सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2017 at 1:09pm

ज़रा ज़रा विष कंठों मे सब रखते हैं

सब में थोड़ा थोड़ा शंकर ज़िन्दा है... .... एक बहुत बड़ा शेर हुआ है, आदरणीय.. 

बधाई !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2017 at 1:06pm

// कुछ शेर आपको अच्छे  लगे ये जान कर बहुत खुशी भी हुई //

जी नहीं, पूरी ग़ज़ल कमाल की हुई है.

आपकी ग़ज़लों पर आपकी छाप स्पष्ट दीखने लगी है. यह रचना-प्रक्रिया में बढ़ा हुआ कदम माना जाता है, आदरणीय गिरिराजभाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 5, 2017 at 7:35am

आदरणीय सौरभ भाई , आपको गज़ल पर आये देख कर आत्मिक खुशी हुआ , इसलिये भी कि मै आपकी व्यस्तता और उसका कारन दोनो जानता हूँ ।

 ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार । कुछ शेर आपको अच्छे  लगे ये जान कर बहुत खुशी भी हुई  और उत्साह वर्धन भी ।

आदरणीय , आज दोपहर की ट्रेन से सपरिवार बैंगलोर जाना है , तैयारी मे व्यस्त रहने के कारण अंतिम शे र मे सुधार नही कर पाया था ।

अभी कर देता हूँ । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 5, 2017 at 7:16am

आदरणीय बृजेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

मात्रिक बहर ( बहरे मीर ) मे --  22 को  121 , 112 , 211 करने की छूट होती है , इस बहर की खासियत है लय , इसका धयान रखना चहिये कि लय टूटे नहीं , इसके लिये मात्रा न गिरायें तो अच्छा , वैसे कहीं एक आध जगह मात्रा गिरानी भी पड़े भी लय का ध्यान रखें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2017 at 11:13pm

अगर सुदामा कहीं दिखे, तो मानो तुम

दिखा नहीं है, लेकिन गिरधर ज़िंदा है .. ... इस शेर ने देह भर में सिहरन पैदा कर दी, आदरणीय. इस में ’गिरधर’ के इंगित पर देर तक सोचता रहा. सहायक या शोषक ? गिरधर का कौन सा रूप आज सुदामा के होने का कारण है ? अगर एक सुदामा है तो वहीं गिरधर भी है ! बहुत खूब ! बहुत खूब !! 

फिर, 

क़दम ताल ही किये अभी तक, चले कहाँ  

दूरी अभी वही है , अंतर ज़िंदा है ..................  अभी वहीं है दूरी अंतर ज़िन्दा है.. .. यह शेर भी झकझोर गया है, आदरणीय.. 

बाकी शेर तो हैं ही जिनपर देर तक वाह वाह की जा सकती है. 

अंतिम शेर पर आपने चर्चा की ही है, सो आपके संशोधन की प्रतीक्षा है. 

इस ठोस भावमय ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कोबूल कीजिए, आदरणीय गिरिराज भाई साहब

सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 3, 2017 at 9:01pm
वाह आदरणीय बहुत ही बेहतरीन..लेकिन इस मापनी को लेकर मैं बहुत असमंजस में रहता हूँ...आखिर इसकी गणना कैसे करते हैं ..जैसे मतले की दूसरी पंक्ति..दूसरे शैर की दूसरी पंक्ति..तीसरा शैर ??थोडा प्रकाश डालें ताकि कुछ सीख सकूँ..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2017 at 8:21pm

आदरणीय मो. आरिफ़ भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2017 at 8:21pm

आदरनीय समर भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2017 at 8:20pm

आदरणीय लक्षमण भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका ह्र्दय से आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
14 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service