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ग़ज़ल(तुम सदा मुस्कराना नये साल में )

ग़ज़ल(तुम सदा मुस्कराना नये साल में )
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(फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन -फाइलुन)

क़ौले उलफत निभाना नये साल में |
मुझ को मत भूल जाना नये साल में |

क्यूँ हैं बाहर खड़े घर में आ जाइए
कीजिए मत बहाना नये साल में |

हाथ ही मिल सके अपने बीते बरस
दिल को दिल से मिलाना नये साल में |

इक कॅलंडर नया घर की दीवार पर
है ज़रूरी लगाना नये साल में |

सिर्फ़ गमगीन आशिक़ की ख्वाहिश है यह
तुम सदा मुस्कराना नये साल में |

फिर से हो जाए या रब दुआ है मेरी
उनके घर आना जाना नये साल में |

अब तो तस्दीक़ हद हो चुकी ज़ुल्म की
तुम क़लम को उठाना नये साल में |

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 2, 2017 at 10:16pm

मुहतरम जनाब महेन्द्र कुमार साहिब , ग़ज़ल में गहराई शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 2, 2017 at 10:10pm

मुहतरम जनाब गोपाल नारायण साहिब , ग़ज़ल में गहराई से शिरकत और आपकी हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 2, 2017 at 8:28pm
आदरणीय तस्दीक़ जी नए साल पर तमाम अपेक्षाएं करती इस ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें
Comment by Samar kabeer on January 2, 2017 at 8:19pm
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,नये साल की आमद पर अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं ।
मतले के ऊला मिसरे में "क़ोल"शब्द भी उन्हीं शब्दों में शुमार होता है जिसमें इज़ाफ़त नहीं लगती,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
'क़ोल अपना निभाना नये साल में'
पांचवें शैर के ऊला मिसरे में 'सिर्फ़'शब्द अच्छा नहीं लग रहा,उसकी जगह "एक"शब्द रखने से मिसरा रवानी में आ जायेगा:-
'एक ग़मगीन आशिक़ की ख़्वाहिश है ये'
Comment by Mahendra Kumar on January 2, 2017 at 3:38pm
नये साल पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने आदरणीय तस्दीक़ जी। मेरी तरफ से हार्दिक बधाई। सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2017 at 10:18pm

आ०  तस्दीक भाई , बहुत बढ़िया

अब तो तस्दीक़ हद हो चुकी ज़ुल्म की
तुम क़लम को उठाना नये साल में

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