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ग़ज़ल -उसका दावा है कि वो भटका नहीं है -- ( गिरिराज भंडारी )

2122   2122    2122

बात कहने का सही लहज़ा नहीं है

या जो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है

 

वो ये कह लें, उनमें तो धोखा नहीं है

पर हक़ीकत है, उन्हें मौक़ा नहीं है

 

गर दशानन आज भी है आदमी में

औरतों में क्या कहीं सुरसा नहीं है ?

 

जो न चल पाया कभी इक गाम अब तक

उसका दावा है कि वो भटका नहीं है

 

ज़ुर्म की गंगा सियासत से है निकली

लाख कह लें, वो कि सच ऐसा नहीं है

 

योजनायें उच्च –निम्नों के लिये हैं

मध्यमों का तो कहीं चर्चा नहीं है

 

वो तवाफ़-ए-ग़ैर को निकला है शायद

मेरा ‘ मैं ’ मुझमें कभी रहता नहीं है

**********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on January 4, 2017 at 4:27pm
आदरणीय गिरिराज सर,मतला,मतला ए हुस्न और हर शेर लाज़वाब।दाद के साथ दिली मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ!
Comment by Samar kabeer on January 3, 2017 at 8:58pm
मैं जानता हूँ कि आप जानकारी पूर्ण करने के लिये मालूमात हासिल करते हैं,मैं तो मंच का सेवक हूँ,आप नहीं जानते मुझे कितनी ख़ुशी होती है ।
आपने पूछा इसलिये बता रहा हूँ कि जनाब मिथिलेश वामनकर जी का सुझाव अच्छा है,लेकिन उनके सुझाये गये मतले के सानी मिसरे में 'तो'की जगह 'जो'शब्द रखना होगा:-
'या जो रिश्ता था कभी,वैसा नहीं है'
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 3, 2017 at 8:10pm

मुहतरम जनाब गिरिराज साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं --
शेर 2 में क़ाफ़िया '' मौक़ा '' देख लीजियेगा --सादर

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on January 3, 2017 at 7:48pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुतही सुंदर गजल केलिए हार्दिकबधाई स्वीकार करें।सादर।
Comment by Mahendra Kumar on January 3, 2017 at 6:46pm
आदरणीय गिरिराज सर, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। मेरी तरफ से ढेरों बधाई प्रेषित है। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 3:27pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से अभार ।

आपकी सलाह उचित है ... यही रख लेता हूँ ।

बात कहने का सही लहज़ा नहीं है

या तो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है    ---  आभार आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 3:25pm

आदरणीय समर भाई , मुझे आप पर पूरा यक़ीन है ... कभी कभी जानकारी पूर्ण करने के लिये पूछ लिया करता हूँ आपसे ।

आ. मिथिलेश भाई जी की सलाह पर गौर कीजियेगा मुझे सही लग रहा है ...

बात कहने का सही लहज़ा नहीं है

या तो रिश्ता था कभी, वैसा नहीं है     ---   यह मुझे सही लग रहा है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 3:17pm

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया , आपको भी नये साल की बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2017 at 3:16pm

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

Comment by Samar kabeer on January 3, 2017 at 2:40pm
"मरासिम"के अर्थ जो आपने लिखे हैं वो सही हैं,लेकिन सबसे पहले ये लिखा है कि ये "मरसूम" का बहुवचन है, बाद में उसके अर्थ दिये गये हैं,'मेल जोल'भी बहुवचन है, इसलिये हम यूँ नहीं कह सकते कि 'मरासिम था'हमें कहना पड़ेगा कि 'मरासिम थे'इस लिहाज़ से "मरासिम"शब्द इस मिसरे में मुनासिब नहीं,मिसरा बदलने के अलावा कोई रास्ता नहीं,और इस बात पर भी इत्मीनान रखिये कि मैं जो भी लिखता हूँ पूरे वसूक़ के साथ लिखता हूँ ।

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