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मार डालेगा तेरा गैर जबाबी होना (ग़ज़ल 'राज')

2122  1122   1122   22

शाम को झील के रुख़सार गुलाबी होना

 मिलके खुर्शीद से जज्बात रूहानी होना

 

उन्स की  मय से लबालब है ग़ज़ल का सागर

, डूबकर उसमे सुखनवर का शराबी होना 

 

बिन कहे छोड़ के जाना यूँ अकेले लिल्लाह

मार डालेगा तेरा गैर जबाबी होना

 

पाक उल्फत या मुहब्बत या इबादत समझो

कृष्ण की चाह में मीरा का दिवानी होना

 

वो मुहब्बत है कहाँ आज वो दिलदार कहाँ

चुन के दीवार में चुपचाप कहानी होना   

 

  नक्श उम्मीद-ए-कलम के ये सदा होते हैं 

  दिल के ज़ज्बात के सागर में सुनामी होना  

 

कब्र का हाल तो मुर्दा ही समझ सकता है

लोग आसान समझते हैं निजामी होना           

 

पुरखतर राह जवानी की बड़ी होती है

उस पे मासूम तेरा रू-ए-किताबी होना 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by rajesh kumari on March 2, 2016 at 5:52pm

आ० समर कबीर भाई जी आदाब ,आपने ग़ज़ल को सराहा मेरा लिखना सार्थक हुआ |भाई जी निज़ामी का अर्थ यहाँ पर प्रबंधक (अर्थात जिसके ऊपर सारी जिम्मेदारी हो )के रूप में लिया है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2016 at 5:50pm

आ० धर्मेन्द्र कुमार जी ,ग़ज़ल पर शिरकत और उत्साह वर्धन का दिल से शुक्रिया |

Comment by kanta roy on March 2, 2016 at 4:14pm
बिन कहे छोड़ के जाना यूँ अकेले लिल्लाह
मार डालेगा तेरा गैर जबाबी होना----- बेहद खूबसूरत गजल कही है आपने आदरणीया राजेश कुमारी जी । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by मनोज अहसास on March 2, 2016 at 3:55pm
एक खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत सारी गहन
भावनाये
पीड़ा
दर्द
सब कुछ पिरो दिया है
आदरणीया
बधाई
नमन
Comment by Samar kabeer on March 2, 2016 at 3:41pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
"निज़ामी"का क्या अर्थ लिया है आपने ?
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2016 at 10:20am

अच्छे अश’आर हुए हैं आदरणीया, दाद कुबूल करें।

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