221—2121—1221—212 |
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जुगनू से मांगने को चला है कि ताब दो |
बेचैन हो गया है बशर फिर नकाब दो |
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इस तिश्नगी से हम न कभी मुतमईन थे |
जामिन से कब कहा था कि गोया सराब दो |
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किसने बदन से आपके चमड़ी उतार ली |
खामोश क्यूं हो, कुछ तो कहो, कुछ जवाब दो? |
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दैरो-हरम में आ गए हो दिल निकाल के |
अब ये तो मत कहो कि मुझे भी शराब दो |
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माना कि बेजुबान है, नादाँ, गरीब है |
इंसान का उसे भी कभी तो खिताब दो |
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तुम भी हकीक़तों की हिमायत करों मगर |
जीने को सब्ज बाग़ के इफरात ख्व़ाब दो |
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इस जंग की फतह को जरा-सा परे रखों |
कुल खर्च आदमी जो हुए है, हिसाब दो |
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बस दहशतों के जिक्र है हर एक वर्क पर |
चैनो-सुकूं की एक तो सच्ची किताब दो |
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Comment
इस तिश्नगी से हम तो कभी थे न मुतमइन
जामिन से कब कहा था कि आबे-सराब दो
तुम भी हकीक़तों की हिमायत करों मगर
जीने को सब्ज बाग़ के तादादे-ख्व़ाब दो / गमख्वार ख्व़ाब दो / बेहद्द ख्व़ाब दो/ दो चार ख्व़ाब दो/
बस दहशतों के जिक्र वरक़-दर-वरक़ मिले
चैनो-सुकूं की एक तो सच्ची किताब दो
आदरणीय समर कबीर जी आपके मार्गदर्शन अनुसार कुछ संशोधन किये है. पुनः आपका मार्गदर्शन निवेदित है. सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, ग़ज़ल आपको पसंद आई, जानकार दिल झूम गया. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. सादर नमन
आदरणीय हर्ष जी, आपकी मुहब्बतों का दिल से शुक्रिया ऐडा करता हूँ. आपकी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ. सादर
आदरणीया राजेश दीदी ग़ज़ल पर आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया मुग्ध कर देती है. आपकी बेशक वाली इस्लाह शानदार है. इस इस्लाह के लिए दिल से आभार नमन
दीदी अपनी किसी भी ग़ज़ल में गोया शब्द का प्रयोग पहली बार किया है. बहुत से शायरों और नए अभ्यासियों को बहुत गोया गोया कहते देखा तो प्रयोग कर लिया. इस पर पुनर्विचार करता हूँ.
आपकी दाद मिल जाती है तो लिखना सार्थक लगने लगता है. सराहना स्नेह मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आदरणीय समर कबीर जी, आप कुछ न कहेंगे तो मेरा बहुत नुक्सान हो जाएगा. ये ग़ज़ल इस्लाह के लिए है. वो दो विचारधारा से सम्बंधित मामला है. यहाँ आपके मार्गदर्शन की प्रतीक्षा सदैव रहती है. आज भी है और अभी भी. करबद्ध निवेदन है कि मुझे इस्लाह और मुहब्बतों से महरूम न रखिये. सादर
वाह मिथिलेश भिया ,बहुत अच्छी ग़ज़ल लिखी है सभी अशआर बढ़िया हुए
माना कि बेजुबान है, नादाँ, गरीब है |
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इंसान का उसे भी कभी तो खिताब दो-----बहुत बढ़िया
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बेहतरीन आ० मिथिलेश जी गजलगोई में आपका जवाब नहीं .
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