For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -नूर - कुछ और मुझ में जीने की हसरत बढ़ा गया

गागा ल/गा लगा/लल गागा/ लगा लगा   

कुछ और मुझ में जीने की हसरत बढ़ा गया

वादा किया था आने का, सचमुच में आ गया.
.
इक रोज़ मुझ से कहते हुए “ख़ूब लगते हो”
वो अपनी आँख का मुझे काजल लगा गया.
.
काफ़िर अगर जो मैं न बनूँ  और क्या बनूँ ?
दिल के हरम को छोड़ के मेरा ख़ुदा गया.
.
उट्ठा मैं हडबड़ा के टटोला इधर उधर,
ख़्वाबों में कौन आया, जगाया, चला गया. 
.
पत्ते झडे जो पक के करे उन का सोग कौन  
अफ़सोस है खिज़ा को... कि पत्ता हरा गया.  
.
मेरी दुआएँ हैं कि उसे मंज़िलें मिलें
जो मुझ से राह पूछ के मुझ को गिरा गया.
.
जुगनू था “नूर” और तो क्या उस के बस में था
लड़ना वो तीरगी से अगरचे सिखा गया. 
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 797

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 26, 2015 at 2:28pm

शुक्रिया आ. श्री सुनील जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 26, 2015 at 2:27pm

शुक्रिया आ. दिनेश भाई जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 25, 2015 at 9:11pm

आ0 नीलेश भाईजी,  इस मुकम्मल ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल करे.

Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 3:28pm
जनाब निलेश "नूर" जी,आदाब,ख़ूबसूरत,मुकम्मल और शानदार ग़ज़ल सुनकर दिल बाग़ बाग़ हो गया,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by narendrasinh chauhan on May 25, 2015 at 1:06pm

बहुत खूब ! दाद कुबूल करें

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 25, 2015 at 10:17am
बहुत खूब नीलेश जी, अच्छे अश’आर हुए हैं। दाद कुबूल करें।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 25, 2015 at 12:45am

बहुत सुन्दर ! हार्दिक बधाई आदरणीय !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 24, 2015 at 11:18pm

आदरणीय नीलेश जी इस मुकम्मल ग़ज़ल पर दिल से दाद हाज़िर है 

सभी अशआर दिल लूट गए 

आपका कमाल है ये  लाज़वाब ग़ज़ल 

दुआएं ढेर सारी 

Comment by shree suneel on May 24, 2015 at 11:08pm
कुछ और मुझ में जीने की हसरत बढ़ा गया
वादा किया था आने का, सचमुच में आ गया.. ... क्या बात है!
आदरणीय निलेश जी.,शानदार ग़ज़ल.. खूबसूरत ग़ज़ल..
भईई मज़ा आ गया.

उट्ठा मैं हडबड़ा के टटोला इधर उधर,
ख़्वाबों में कौन आया, जगाया, चला गया. ख़ूब.. ख़ूब
हार्दिक बधाई आपको आदरणीय...
Comment by दिनेश कुमार on May 24, 2015 at 7:55pm
हर शे'र पढ़ने के बाद मुँह से खुद ब खुद हयी शाबाश निकला है। मक़ते की फिर भी बात ही अलग है। वाह वाह आ. निलेश जी, लाजवाब ग़ज़ल ... !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service