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लघुकथा : प्रीत (गणेश जी बागी)

कुष्ट रोग से ग्रसित बिधवा बुढ़िया अकेली ही रहती थी. इकलौता बेटा शादी कर पता नहीं कहाँ जा बसा था. किसी ने बताया कि रोग से मुक्ति चाहिए हो तो जुम्मे के रोज मजार वाले बाबा के पास जाओ. बुढ़िया अगले ही जुम्मे को मजार पर पहुँच गयी । वहाँ झाड़-फूंक चल रही थी. बाबा के एक शागिर्द ने चढ़ावा लिया और घर-परिवार, रिश्तेदारों आदि के बारे में पूछताछ कर एक तरफ बिठा दिया जहाँ पहले से उस जैसे अन्य मरीज इन्तजार कर रहे थे. खैर कुछ देर इन्तजार के पश्चात उसकी बारी आयी ।
बाबा की गंभीर आवाज गूंज उठी, “माई तेरे ऊपर प्रेत का साया है वह भी तीन-तीन, एक तेरा भाई दूसरा तेरा पति और तीसरा एक बाहरी जिन्न है, ये सभी मिलकर तुमको सता रहें हैं”
“बाबा कुछ भी कीजिये किन्तु मेरी बीमारी ठीक कर दीजिये”
“इन तीनों प्रेतों को जला कर राख करना होगा, माई तू इसके लिए गुहार लगा”
बुढ़िया शांत हो गयी, उसके मुख से कोई शब्द नहीं निकल रहा था ।
बाबा की कड़क आवाज पुनः गूंजी, “माई जल्दी गुहार लगा”
बुढ़िया धीमे से बोली, “बाबा मेरे पति को छोड़, बाकी सबको जलाकर राख कर दो”

(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 13, 2015 at 11:00pm

आदरणीय गणेश भाईजी

मृत्यु बाद भी देखिये, एक पतिव्रता का प्यार।

भारत में ही मिलते हैं, ऐसे सुंदर संस्कार ॥  

हार्दिक बधाई, लघु कथा की 

Comment by Chhaya Shukla on February 13, 2015 at 9:11pm

आदरणीय ये पंक्ति आपके लघु कथा की आत्मा है ,और भारतीय नारी का चरित्र |
सदा की तरह कमाल की लघु कथा दिल से बधाई स्वीकारें सादर !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 13, 2015 at 6:30pm

जिससे जीवन में प्रीत की है उसके बारे में बुरा करना तो  दूर भारतीय नारी बुरा सोच भी नहीं सकती | सुंदर लघुकथा में वास्विकता की झलक दिखाई देती है | हार्दिक  बधाई  आद श्री गणेशजी "बागी"जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 13, 2015 at 11:54am

कहते हैं न कि भारतीय पत्नी सपने में भी पति का बुरा नहीं चाहती आपकी लघु कथा तो इस कथन को और भी ऊँचाइयों पर ले जाती है की मरने के बाद भी प्रेत योनी में होने के बाद भी उसको सताए जाने के बाद भी स्त्री पति का बुरा नहीं चाहती ये संस्कार ही तो भारत को अलग विशेष देश की  श्रेणी में खड़ा करते हैं ,बहुत ही प्रभावशाली लघु कथा ...बहुत बहुत बधाई आपको आ० गणेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 13, 2015 at 8:09am

ये है भारतीय संस्कृति , और हमारे संस्कार , महासति सावित्रि हमारे देश मे ही हो सकती है , अन्य कहीं नहीं । ये बात अलग कि कोई सत्यवान सा भी हो । लाजवाब , आदरणीय बागी जी , आपकी लघुकथायें हमेशा बेमिसाल होतीं है । दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 12, 2015 at 11:56pm

प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, अनुरोध है कि एक बार पुनः इस लघुकथा को पढ़ें, सादर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 12, 2015 at 11:07pm
ठीक तो है, उसे पति के लिए ही तो ठीक होना है, बहुत सही अभिव्यक्ति, आदरणीय इंजी O गणेश जी बागी जी, बहुत सुन्दर लखु कथा, बधाई, सादर।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 12, 2015 at 10:16pm

आदरणीय मिथिलेश जी, लघुकथा आपको सफल लगी यह जान मन प्रसन्न है, बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 12, 2015 at 10:15pm

आदरणीय जितेन्द्र जी, आपकी प्रतिक्रिया का सदैव इन्तजार रहता है, बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 12, 2015 at 9:31pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से यह लघुकथा गौरवान्वित हुई, बहुत बहुत आभार.

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