For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वेंटिलेटर (लघुकथा)

“सुनिए , जरा प्याज काट दीजिये । ”

“देख नहीं रही हो , अभी-अभी थक हार के घर लौटा हूँ ।”

अरे….मैं भी तो आज 5 बजे दफ्तर से आयीं हूँ ।

“हाँ तो कौन सा पहाड़ खोद कर आई हो ।”

“तो तुम ही कौन सा लोहा पिघला रहे थे ?”

“इतना सुनते ही पति ने चप्पल उठा के पत्नी के मुहँ पर दे मारी, पत्नी तमतमा कर आई और पास ही पड़ा जूता उठा कर पति के मुहँ पर जड़ दिया ।”

इधर खबर आ रही थी.. “अभी –अभी , वेंटिलेटर पर पड़ी भारतीय संस्कृति ने दम तोड़ दिया ।”  

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”  

Views: 1094

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 29, 2015 at 12:54am

बेहतरीन लघुकथा ... आखिरी की पंच लाइन तो बस कमाल हो गया . आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी इस सफल लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई निवेदित है. 

इस पोस्ट में फॉण्ट बहुत छोटे हो गए है कृपया एडिट कर साइज़ सही कर ले.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 28, 2015 at 9:49pm

इधर खबर आ रही थी.. “अभी –अभी , वेंटिलेटर पर पड़ी भारतीय संस्कृति ने दम तोड़ दिया ।”  

laghu katha me prastuti ka bada mahatv hai I aapkee is panch line ne katha ka  achchha sanskaar kiya hai I

Comment by Hari Prakash Dubey on January 28, 2015 at 8:52pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , रचना पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया अपने आप में भारतीय समाज में आये परिवर्तन का बयान कर रही है और आपकी ये पंक्तियाँ ..... मूल्य गिरते हए देखें हैं, फिर गिरते हुए मूल्यों की बढ़ती हुई रफ़्तार देखी है. ..... बहुत ही सत्य हैं ! प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 28, 2015 at 6:54pm

वाह सर ,,,,,,,,,,,, छोटी सी पर जीवन के कटु सत्य का चित्रण,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by harikishan ojha on January 28, 2015 at 6:28pm

आदरणीय हरी प्रकाश जी,  बहुत ही जबरदस्त लिखा है आप ने, "गुरु मानना पड़ेगा, दम है लेखनी में", आप को  बहुत बहुत बधाईI

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 28, 2015 at 11:34am
जीवन के छे दशक जी चुका हूँ, उन्तालीस वर्ष सरकारी नौकरी की, मूल्य गिरते हए देखें हैं, फिर गिरते हुए मूल्यों की बढ़ती हुई रफ़्तार देखी है. अब आलम ये है कि कब क्या हो जाये , जो हो जाए वो थोड़ा , क्योंकि आने वाला क्या है , किसी को पता नहीं।
समाज समाज से चलता है, यदि समाज सही राह पर होगा तो राजनीति भी सही होगी, अर्थ - नीति भी सही और नियंत्रित होगी , क़ानून भी सयंत होगा। पर यदि समाज ही नियंत्रित नहीं होगा तो वह सब होगा जो हो रहा है, जो इस छोटी सी कथा में है, जो अभी कुछ दिन पूर्व श्री मिथिलेश वामनकर की ग़ज़ल -अजब बनाया हुआ फरिश्तो में चित्रित दिखाया गया है. सोचना पड़ता है, आने वाली पीढ़ियों को क्या क्या देखना होगा , कैसे - कैसे देखना होगा। प्रश्न उठता है , इस समाज से वास्तव में क्या किसी को कोई सरोकार है ? कौन है इस समाज का मार्ग- दर्शक ?
लिखते रहिये , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी, शायद लोगों को कुछ नज़र आये. सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
34 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
54 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी जी, आपने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद जी, अपनी समझ अनुसार मिसरे कुछ यूं किए जा सकते हैं। दिल्लगी के मात्राभार पर शंका है।…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मनुष्य से आवेग जनित व्यवहार तो युद्धभा में भी वर्जित है और यहां यदा-कदा यही आवेग ही निरर्थक…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी आपको मेरा प्रयास पसंद आया जानकर ख़ुशी हुई। मेरे प्रयास को मान देने के लिए…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपके…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"2122 - 1122 - 1122 - 112 / 22 हमने सीखा है ये धड़कन की ज़बानी लिखना दिल पे आता है हमें दिल की…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service